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________________ (२०) नं० मूल पाठ | टीका भावार्थ प्रात्मा १० प्रआयातिवा नाना गति नाना प्रकार की गति करके सर्व लोक को "सतत गाभि स्पर्शता है इस से दसवां नाम आत्मा है । त्वात् रङ्गणेति.११ रंगणे तिवा गणं राग रागद्वेष मयीरङ्ग से रंगा हुवा है इसी स्तद्योगाद्र- लिए इशारमा लास रङ्गणेति है । झणः हिण्डुएति. १२ हिंडएतिवाहिण्डुकत्वे कर्ममयी हिंडोले में बैठ के च्यार गती में न हिण्डुका हिंडता है इससे धारमा नाम हिंडुक है ..योगलेति-पूरणाद्गना पुद्गलों को ग्रहण करना और छोडनादि च शरीरादिनापुद्गलः | कार्य करता है तथा पुद्गलों से लिप्त है मा.निषेधे प्रत्यया यह जीव नया नहीं है सास्वता है इस की पर्याय तो पलटती है परन्तु द्रव्यत: नादित्वा. सास्वता है इससे सानव है. पुराण: १३ वा वा कर्ता कार- कर्मों का कती है वोही पाश्रव है इस १५ कत्तातिवाका कर्म-लिए जीव का नाम करता है । रंगांम् । tambe Ans. .. .- . - . . . - - - - - -
SR No.010702
Book TitleNavsadbhava Padartha Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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