SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 206
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (२०४) छाय श्रही कीलू गणी राय ॥ ॥ कीरति रिसाई जाई । मानूं राखी रहै नांहीं। भवीजन मन भाई ज्ञान बधाय ॥ गणी ।। १॥ दीपै हद तनु दुती । इन्दू से अधिक कुंती। सम दम खम युति तिमिर नसाय ॥ गणी ॥२॥ विवध मर्याद वाद । रहो.ध्रुवं मिष्ट साद । गुन गिरवी श्रगाथ। सागर प्रथाय ॥ गणी ॥ ३॥ इति ।। ॥ ढाल राग खंमाचमें ॥ गणी तोरा दरश सरश पर वारीजी ॥ गं ॥ कालू गणि राजा । भव दधि पाजा । गरीव नि. वाजा । जग जस जामा जहारीनी ।।ग ॥१॥ श्रेष्टम् पटधर प्रज्ञान तिमर हर । विमल बुद्धिवर । ज्ञान बान सर सारीजी ॥ग ॥२॥ श्रनुत्तर खम दम । अंतिशय जिनसम । निरुपम निर मम रमंनिज भाव विचारीनी॥ग ॥३॥ पटतीश गुन युत । क्रान्ति रवी वत । अमृत वच सैत । वाग्रत कुमति विडारीजी ।। ग॥ ४॥ हरण भ्रमण दुःख । करण वरण सुख । धरम परम मुख । गुलाब शरण तुझ धारीजी ।। ग॥५॥ शते ।। । इति संपूर्णम् ॥ ..
SR No.010702
Book TitleNavsadbhava Padartha Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy