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________________ ( २०२ । . ऊंडी तुझ बालोचनारे॥ प्रवल प्रतापी श्राप ॥ जिन मग मागं जमायवा कांई स्थिर मर्यादां स्थाप ॥ प्रीत ॥१॥ अष्टादश सोलै संयमीरे । साठ वर्ष संथार ॥ श्रावै छै संत श्रारज्यां कहया चरम वचनचमत्कार ॥ प्रीत ॥ ५॥ येक महरतर श्रासरेरे श्राया साधू दोय ॥ दोय महुरतरै आंसरै कोई तीन साध्धियां जोय ॥ प्रीत ॥ ६ ॥ लोक वचन बहु इम कहैरे । श्रा अचरज वाली बात ॥ भादवा शुक्ल त्रयोदशी । काई पण्डित मर्ण विख्यात ॥ प्रीत ॥ ७॥ ॥ इति ।। ॥अथ श्री कालूगणी स्तवना ॥ ॥ दारू दाखांकी ॥ दारू दाखां की म्हारा छैल भंवरजी ने थोडीसी पाजे, हे दाए. चाल।। होजी महारा दीन दयालू कालूगणी गुण दरिया हो । निरमल नीर बीर बचना करि गहरा भरिया हो । पाखंड डरिया हो । पाखंड डारया हो एतो भव दधि कीच बीच में पडिया हो।कर्म अघ जडिया हो ॥१॥ जे भवी धीर सीर शाशन में थोरै शरणें तिरया हो । पांच महाबत धार सार'
SR No.010702
Book TitleNavsadbhava Padartha Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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