SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 192
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १११०) भूत, धातू मिट्टी लोली भूत जैसे जीप कर्म लोली भूत, घृत दूध लोलीभूत जैसे जीव कर्म लोलीभूत हैं, परंतुघाणियांदिक के उपाय,से तेल खल रहित होवै वैसे ही तर संयमादि उपाय से जीव कर्म रहित होय सो मोक्ष, झेरणादिक के उपाय से घृत छाछ रहित होय वैसे ही जीव तप संयमादि उपाय से कम रहित होय सो मोक्ष अग्नियादि उपाय से धातू मिट्टी अलग होय वैसे ही तप संयमांदि उपाय से कर्म रहित होय सो मोक्ष है, पुद्गलों का संगी होके जीव पंच इन्द्रियों की विषयों से विषयी होने से शब्द रूप रश गंध और स्पर्श में रक होरहा है, निजगुना को भूल कर परगुनों से राच रहा है जिससे ज्ञानादि गुनों का लोप होके मिथ्यात प्रमाद कषायादि पाश्रव द्वारों से कर्म ग्रहण करता है तब कर्मानुसार च्यार गति चौरासी लक्ष जीवायोनि में परिभ्रमण कर रहा है, जन्म मरण रूप दावानल मैं जल रहा है किन्तु भले परिणामों से कभी मनुष्य जन्म पाके पुन्योदय से आर्य देश उत्तम कुल निरोग शरीर पूर्ण इन्द्रियां और सद्गुरु का संयोग मिलने से या स्वतहः ही क्षयोपस्मानुसार श्रीजिन प्रापित धर्ममार्ग को जानकर संसार को अनित्य जानता है और प्र. त्याख्यान प्रज्ञा से सर्वसावध जोगों को त्याग कर निरारंभी निःपरिग्रही होता है तब तप संजमादि करिके पूर्व संचित कर्म खपाते खपाते क्षपक श्रेणि चढकर अनुक्रमे शुक्ल ध्यान से तेरमै गुणस्थान में केवल अर्थात् सम्पूर्ण ज्ञान दरशन प्राप्त करता है फिर चौदमें गुणस्थान में वेदनी नाम गौत्र इन तीनों कर्मों को येकदम क्षय करके अंत समय में आयुष्य कर्म खपाके मोक्षपद प्राप्त करता है, अर्थात् सर्व कर्म रहित होके येक समय ऊर्ध्व ग. ति कर लोकान में विराजमान होता है वहां जीव सास्वता. सुखी है उन सुखों का पार नहीं है वे सुख अमूल्य पातमीक निजगुन हैं उन सुखों को कोई औपमा नहीं है, परंतु समझाने के लिए दृष्टान्त देके कहा है गत काल में देव लोकों में देवता हुए जिन्हों का सुख, वर्तमान में देवता है उनका सुख, और अनागत काल में जो देवता होंगे जिन्हों का सुख येका करिके उन्हें अनन्तानन्त
SR No.010702
Book TitleNavsadbhava Padartha Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy