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________________ ॥ भावार्थ ॥ · ज्ञानावरनीय दरशनावरनीय बेदनीय और अंतराय इन ध्यार कम्मों की स्थिति जघन्य अंतर महरत उत्कृष्टी ३० तीस तोड़ा कोडि सागर की, मोहनीय कर्म की स्थिति जघन्य अंतर महरतकी और उत्कृष्टी स्थिति दरशन मोहनीय कीतो ७० कोड़ा कोडि लागर, चारित्र मोहनीय की ४० कोड़ा कोदि सागर की, भाऊषा कर्म की स्थिति जघन्य अंतरमहरत उत्कृष्टी ३३ सागर की, नाम कर्म गौत्र कर्म की स्थिति जंघन्य आठ महरत की उत्कृष्टी २० वीस कोड़ा कोडि सागर की है, इस प्रकार पाठों कमों की प्रकृतियां की स्थिति बंध जीव के है सो संसार में श्रमन्य जीव हैं उनले अनन्त गुणे अधिक येक येक जीवके कर्म प्र. देश हैं, तात्पर्य येक येक जीवके असंख्याता अंसंख्याता प्रदेश हैं और येक येक प्रदेशोंपर अनन्ते अनन्ते कर्म प्रदेश बंधे हैं उन बंधे हुये कम्मों का नाम बंध है वे अवश्य उदय में श्रावेंगे तव जीव को पुद्गलीक सुखं दुःख होगा, जो शुभ परिणामों से बांधे हैं वे शुभ पण उदय आचेंगे और जो अशुभ परिणामी से बांधे हैं वे अशुभ पणे उदय भावेंगे, आठों ही कर्मों के पुद्गलों में पांच वरण दोय गंध पांचरश और लूखा चोपड्या (चिकणा) ठंडा ताता ये च्यार स्पर्श हैं, कर्म पुद्गल हलके भारी मुलायम और खरदरा नहीं है, जैसें तलाव पानी से सम्पूर्ण भरा हो वैसे ही जीवके असंख्याता प्रदेशमयी तलाव कर्म प्रदेश रूप पानी से पूर्ण भरा है, दलाव के पानी पानेके नाले रोककर भरे हुये पानी को निकाल नं को मोरियां खोल कर निकालें तव तलाव पानी रहित. होवे वैसे ही जीव-मयी तलाव के आभव रूप नालों को कंधकर कर्म रूप जो पानी है उसे तपस्या करिके निरजरा भयो मोरियों ले निकालते निकालते सर्व कर्म रहित होजाय जव उस ही जीव, का नाम मोक्ष है निरमला हुवा इसलिये निरवाण और सर्व का र्य सिद्ध किये इस लिये जीवको नाम सिंद्ध है, यह आठमां पदा: थै बंध औंलखाने को खामी श्री भीखनजीने मेवाड़ देशान्तरगत. नांथाद्वारे में सम्बत् १८४६ चैत्र बुद १२ शनिवार को दाल जोड़ी
SR No.010702
Book TitleNavsadbhava Padartha Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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