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________________ ( १८२) अंतर मंहूरत होयोजी । उत्कृष्टी सागर तेतीसनी । श्रागै पाऊषारी स्थितीन कोंयोजी॥॥१७॥ स्थित नाम गौत्र कर्म तणीं । जघन्य आठ महुरत सो. • योजी । उत्कृष्टी इक इक कर्मनीं । बीस कोड़ा कोडि सागर होयोजी ॥ ॥ १८॥ येक जीवरै आठ कम्मौ तणां । पुदगलरा प्रदेश अनन्तोजी। ते अभव्य जीवांथी मापियां । अनन्त गुणां कहा भगवंतोजी॥5॥१४॥ते अवश्य उदय श्रासी जीव । भोगवियां विन नांहि छुटायोजी । उदै श्रायां विन सुख दुःख हुवे नहीं । उदय प्रा. यां सुख दुःख थायोजी ।। ६ ।। २० ।। शुभ परिणामैं जे कर्म बांधिया । ते शुभ पण उदय आसीनी ॥ जे अशुभ परिणामें बांधिया । तिण कम्मौ सूं दुःख थासीजी ॥ ॥ २१ ॥ पंच वर्णा पाढूं ही कर्म छै । दोय गंध नैं रश पांचूं हीजी।। चोपरसी श्राही कर्म छै । रूपी पुदगल कर्म श्राएं हीजी ॥ ॥ २२ ॥ कर्म तो लूखाने चोपड्यां । वलि ठंडाने ऊन्हा होयोजी ॥ कर्म हलका नहीं भारी नहीं। सुहाला ने खरदरा नहीं कोयो जी।। बं ॥ २३ ॥ कोई तलाव जल पूरण भरयो। .
SR No.010702
Book TitleNavsadbhava Padartha Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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