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________________ ( १७६) बंध तणां दांय भेद छै । येक पुन्य तणों बंध जाणोजी ।। दूजो बंध के पापरो । दोनूं बंधरी करिजो पिछाणोंजी ।। बं ॥ ४ ॥ पुन्य लूं. बंध उदय हुषां जीवरें। सुख साता हुवै छै सोयोजी। पापरो बंध उदय हुवां । विवध पण दुःख होयोजी । बं ॥५॥ बंध उदय नहीं त्यां लगि. जीवन सुख दुःख मूल न होयोजी ॥ बंध तो छतारूप लागो रहै । फोड़ा न पाडै कोयोजी ।। बं ॥६॥ तिण बंध तणां च्यार भेद । त्यांने रूडी रीतः पिछांणोंजी ।। प्रकृती बंध ने थित बंध दूसरो । अनुभाग में प्रदेश बंध जागोजी ॥६॥ प्रकृती बंध कारी जुई जुई । कारा स्वभावरै न्यायोजी।। बंधी तिण समें बंध छै । जैसी बांधी तैसी उदय प्रायोजी । बं ॥८॥ तिण प्रकृती ने बांधी छै काल सं ॥ इतरा काल तांई रहसी तामोजी ॥ पछै तो प्रकृती विरलावसी ॥ थित सूं प्रकृती बंध छै आमॉजी ॥ ॥ ६ ॥ अनुभाग बंध स्शविपाक छै जिसो जिसो स्श देसी हायो जी ॥ ते पिण प्रकृती बंध न रश कह्यो । बध्यो जिसो रस उदय पायो जी ॥ ॥ १०॥ प्रदेश
SR No.010702
Book TitleNavsadbhava Padartha Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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