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________________ १ १७०) उपधि विवशग । भात पांणी में इमहिन पिछाणजी ॥ या ॥ ४२ ॥ भावें विवशग रा तीन भेद छ। कषाय संसार में कर्मजी ॥ कषाय विवशग च्यार प्रकारें। क्रोधादिक च्यारूं छोडयां धर्मजी। या॥ ॥ १३ ॥ संसार विवशग संसार नों तजवो । तिणरा भेद छै च्यारजी ॥ नारकी तिर्यंच मनुष ने देवा । त्यांने तजने त्यांसं हुवै न्यारजी॥ या॥ 1.४४॥ कर्म विवंशग आठ प्रकारें । ते तजणां श्राएं ही कर्मजी ॥ त्यांने ज्यू ज्यू तजै ज्यूं हल. का हो।एहवी करणी छै निरजरा धर्मजी॥या॥४॥ ...... . ॥ भावार्थ । .. छै प्रकारको वाह्य करणी निरजराको फही अब के प्रकार अभ्यन्तर करणी कहते हैं। १-प्रायश्चित अर्थात् व्रत प्रत्याख्यान में दोषलगा उसकाप्रायश्चित्त तप अङ्गीकार करें जिससे जीव अशुभ कर्म खय करके निरम. ला और आराधक होय । २:विनय तप सात प्रकार से होता है। १-ज्ञान विनय अर्थात् मति ज्ञान प्रादि पांचों शानों का वर्णन • विस्तार सहित करें तथा ज्ञान वा ज्ञानवंत के गुन करें। .२-दशन विनय अर्थात् समाकितदरशन का बिनय सुश्रुषा - और अणासातना करने से होता है। ... : १-सुश्रुषा विनयतो अनेक प्रकारसे तथा देश प्रकार से गुरू महाराज की तथा अपने से बड़े साधुवों की करणी सो
SR No.010702
Book TitleNavsadbhava Padartha Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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