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________________ T (१४) श्लोक-जीवादिक पदार्थानां नवानां भूरिनिर्णयः । ज्ञात्वैवं स्वल्पकर्माणाः पश्यन्तिहि मनोरथम् २ दोहा-जीव अजीव उलख्यां विना,मिटैन मनरो भ्रम समकित श्रायां विन जीवरे,रुकैन श्रावताकर्म · श्लोक-जीवान जीवा न ज्ञात्वा मुच्यतेन मनोभ्रमः सम्यक्त्वमन्तरारौधो जीवानां न भवक्रमात् । दोहा-नव ही पदास्थ जूजूवा,जथा तथ सरधै जीव । ते निश्चय सम दृष्टि जीवडा,त्यां दीधी मुक्तनी नींव ४ श्लोक-पदार्थात् नव संहस्य, येऽलं श्रद्दधते जनाः। समदृष्टि गुणास्ते हि, मुक्ति मूलं प्रयुञ्जते । ॥ दोहा ।। हिवै नवही पदारथ पोलखायवा,जुदा २ कहूं धूं भेद। पहिला पोलखाउं जीवने,ते सुणज्यो प्राण उमेद ५ श्लोक-नवानां हि पदार्थानां, भेदान् वच्मि प्रथक् २ । .: वोधयाम्यादितो जीव,मेतऋणुत सादरम् ५ (भावार्थ) नमस्कार करता हूं श्री वीरप्रभु शासन के धणी को और साधू साध्वी रूप गण के स्वामी गौतम गणधर को इन तरण तारण पुरुषों का हमेशा नाम जपना चाहिए जिनहों ने जीवादिक नवतत्वों का निर्यण विधिपूर्वक किया है सो हलू कमीजीव
SR No.010702
Book TitleNavsadbhava Padartha Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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