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________________ (१४६." शान भोर समधी के ज्ञान कहा जाता है, शान अज्ञान दोन ही साकार उपयोग है। २-दूसरा घातीक कम दरशनावरणीय है जिसकी प्रकृती है 'जिसमें से प्रचलु दरशनावरणी देशते हमेशा क्षयोपस्म रहती है जिससे प्रचt.दरशन और स्पर्श इन्द्री तो जीवके हमेशाही है वाकी जैसी जैसी प्रकृती का क्षयोपस्म होय वैसा वैसा ही गुन जीवके प्रगट होता जाता है, चक्षु दरंशनावरणी का क्षयो. पस्म होने से चचु इन्द्री और चनु दरशन गुन होता है, अच. क्षु दरशनावरणी का विशेष क्षयोपस्म होनेसे अचच दरशन "और श्रुत प्राण रश: स्पर्श, येह च्यार इन्द्रियां होती हैं, अवधि दशनावरणी का क्षयोपस्म होनेसे अवधि दरशन उत्पन्न हो'ताई, तात्पर्य पांच इन्द्रियां और तीन दरशन यह आठ गुन दरशनावरणीय कर्म का क्षयोपस्म होने से होते हैं साकेवल दरशनकी बानगी है, पांच इन्द्रियांभौरान दरशन येह जीवके म. रणागार उपयोग गुन हैं।" ३-तीसरा घातिककर्म मोहनीय है जिसका क्षयोपस्म होने से जीषके मोठ गुन प्रगट होते हैं, मोहनीय कर्म के दोय भेद है चारित्र मोहनीय और समक्ति मोहनीय चारित्र मोहनीय की .पश्चीस और समाकित मोहनीय की तीन प्रकृती हैं जिसमें से चारिष मोहनीय की प्रकृतियां किंचित् हमेशां क्षयोपस्म रह- . ती है जिससे शुभ जोग और भले अध्यवसाय जीवके वर्तते हैं तथा धर्म ध्यान भी ध्याता है परंतु कषाय मिटणे से धर्म ध्यान ध्याया जाता है, ध्यान परिणाम जोग लेश्यां श्रध्यवसाय येह सर्व भले पते .सोअंतराय कर्म का क्षयोपस्म होने से. तथा मोहकर्म का उदय अलग होने में वर्तते हैं, अब मोहनीय कर्म का क्षयोपस्म होने से जीव अाठ बोल पाता है सो कहते हैं। . . . . . . . , . . :
SR No.010702
Book TitleNavsadbhava Padartha Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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