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________________ इसलिए दया धर्म की प्ररूपना करने वाले सतगुरुओं का कहना है, देवानुपियो! जागो जागो जागकर के दया में धर्म हिंसा में पाप जिन आशा में धर्म प्राशायाहर पाप समझो और जीव अजीव आदि नवपदार्थों की पोलखना करो तब जैनी होकं संसार प्रतः फरागे केवल नाममात्र जैनी कहलाने से कुछ भी प्रात्मोन्नति नहीं होगी, "होगी शुर सरधन से" ज्ञान धिना फ्रिथा कष्ट फरनेसें सर्वथा आराधक कभी नहीं होवोगे "सूत्र में कहा है" (पढमनाण तबो दया) अर्थात् प्रथम ज्ञान और पीछे दया, तथा जो ज्ञान विनाकरणी वा तपस्या करके मुनिराज कहलाते हैं परन्तु उन्हें मुनि नहीं समझना चाहिए क्योंकि उत्तराध्ययन सूत्र में कहा है "नाणणय मुणी होई" अर्थात् मानवंत होने से मुनी होते हैं ज्ञान विना नाम मात्र मुनि राज होते हैं भाव मु. नि तो जव ही होंगे तब नव तत्वों का जाण होके सावध कार्य की आशा नहीं देंगे और षट हव्य की गुण पर्याय को यथार्थ समझेगे श्री उत्राध्ययन के मोक्ष मार्ग अध्ययन में कहा है। एवं पंच विहणानां दब्वाणय गुणाणय । . पजवाण सव्वेसि नाणं नाणी हि दसियं ।। अर्थात् वस्तुसत्ता जाणे विना ज्ञानी नहीं तथा नवतत्वों को श्रोलखै वह समकती है ज्ञान विना चारित्र कभी नहीं होसकता है उचाध्ययन में ऐसाही कहा है "नाणेण विना न हुंति चरण. गुणा" अर्थात् ज्ञान विना चारित्र के गुण नहीं, जीव अजीवादि का ज्ञान होके संयम पचखेंगे तव भाव निक्षेपैं मुनिराज होगा श्री अनुयोगद्वार सून में कहा है। इमे समण गुणमुक्कयोगी छकाय निरणु कंपा हया इव दुद्दामा गया इव निरंकुसा घट्टा मट्ठात्तु, प्योट्ठा पंडुरया उणण जिणाणं प्रणा एस छंट्टा
SR No.010702
Book TitleNavsadbhava Padartha Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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