SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 102
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कर्म जलस्य संगलन माश्रयः कर्म बंधन मिस्यर्थः तसद्वाराखीव द्वाराण्युपाया आश्रव द्वाराणीति" अर्थात् कोका बंध कर कर मोका उपाय सोही पाश्रव द्वारहै, पानव द्वारोंका ढांकण संबर द्वार है जिससे न्यूसन कर्म नहीं बंधते हैं, ऐसे ही चतुर्थीग श्री समयायंगमें पंच आश्रय द्वार और पंच संबर द्वार कहे हैं मा. श्रय द्वारा कर्म लगते हैं संवर द्वारा कर्म रुकते हैं तथा उत्राभ्यः यन गुण तीसमा अध्ययन में कहा है प्रतिक्रमण करणेसे प्रतीका लेन्द्र ढकते हैं तथा प्राश्रय द्वार बंधता है, पचनमाणसे भी मा. अव संधता है और श्रावते कर्म मिटते हैं, तथा इसही अध्ययन में कहा है जैसे जलकें आगमन रोकनेसे जल नहीं पाता है वैसे ही आश्रय द्वार रंधनेसें पाप नहीं पाता है, तथा दशव कालिक सत्रक तीसरे अध्ययन में कहा है अाधव द्वारों को ढकणे से पाप महीं बंधता है भिक्षु वोही है सोमाभव द्वारोंको कंधे, उत्राध्ययन के गुण तीसमा अध्ययन में खुलासाकहा है आश्रय द्वार को कंधने से कर्मों की मुक्ति होती है, तथा प्रश्न व्याकरण सूत्र में हिम्सादि पंच माधष द्वारों को अधर्म द्वार कहे हैं, श्रीठाणां अंगके पांचवें ठाणे में कहा है आश्रय द्वार का प्रतिक्रमण करके इंधना अर्थात् बंध करना चाहिये जिससे फिर पाप नहीं लगता है, यही क्यों श्रीभगवती मंत्र के तीसरा शतक के तीसरे उद्देसे में फूटी नांवा का दृष्टान्त देके आश्रव को नौलखाया है अर्थात् जैसे नापा के छेन्द्र होने से नाथा में पानी भरता है वैसे ही जीव मयी नावा मैं । श्राश्रय मयी छेन्द्र से कर्म मयो पानी अाता है, तात्पर कमों का हेतु उपाय और करता श्राश्रव है हेतु उपाय करता है सो जीव हैं। ॥ ढाल तेहिज ।। श्राश्रय द्वार बाम गम । ते तो जीवतणा परिशाम । त्याने अजीव कहै छै मित्थ्याती । खोटी श्रद्धा तणां पख पाती-॥ २४ ॥ कर्मा ने ग्रह वे.
SR No.010702
Book TitleNavsadbhava Padartha Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy