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________________ pattinattituitarthatattaittiraintaining कविवरवनारसीदासः। Httekek.krket.kekutekekikikokutekekekakkukkutek.kutakix.kuttitutkukkakutekutekekatukkut गुणकथन । भाषा कवित अध्यातम माहिं । पंडित और दूसरो नाहि ।। क्षमावंत संतोषी भला । भली कवितपढ़येकी कला || पढे संसकृत प्राकृत शुद्ध । विविध देशभापा-प्रतियुद्ध । जाने शब्द अर्थको भेद । ठाने नहीं जगतको खेद ॥ मिठयोला सवहीसों प्रीति । जैनधर्मकी दिढ परतीति ॥ सहनशील नहिं कहै कुवोल। सुथिर चित्त नहिं डांवाडोल है सबनिसों हित उपदेश । हिरदै सुष्ट दुष्ट नहि लेश ॥ पररमगीको त्यागी सोय । कुव्यसन और न ठगने कोय ॥ हृदय शुद्धसमकितकी टेक । इत्यादिक गुन और अनेक * अल्प जघन्य कहे गुन जोय ।नहिं उतकिष्ट न निर्मल होया दोपकथन। क्रोध मान माया जलरेख । पै लछमीको मोह विशेख ॥ पौत हास्य कर्मदा उदा । घरसों हुआ न चाहै जुदा ॥ कर न जप तप संजम रीत । नहीं दान पूजासों प्रीत ॥ थोरे लाभ हर्प बहु धरै । अल्प हानि बहु चिन्ता करै ।। मुख अवध भाषत न लजाय । सीखै भंडकला मन लाय॥ भाषै अकथकथा विरतंत । ठानै नृत्य पाय एकन्त ।। अनदेखी अनसुनी बनाय । कुकथा कहै सभाम आय ॥ होय निमग्न हास्यरस पाय । सुपावाद विन रह्यो न जाय॥ अकस्मात भय व्यापै धनी । ऐसी दशा आय कर वनी ॥ मालामाल Attitutet-t.t.tt.kinatTHEEntukuta.kukuntukkukkutritiit.tt-kutt.tituttitutia
SR No.010701
Book TitleBanarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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