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________________ 4 . . te detetotni testata tertututo tertenties testertreter distritostitute Retention १९२ कवियरवनारसीदासः । परन्तु उक्त सव कवितायें भी जिनागमके प्रतिकूल होंगी, ऐसी शंका न करनी चाहिये । वे सब अनुकूल ही हुई हैं। ऐसा कविवरने अर्द्धकथानकमें स्वयं कहा है सोलह सौ वानवे लों, कियो नियतरस पान | पै कवीसुरी सब भई, स्यादवाद परमान ॥ गोमट्टसारके पढ़ चुकने पर पंडित रूपचन्दजीकी कृपासे जब वनारसीके हृदयके कपाट सुल गये, तब उन्होंने भगवत्कुन्दकुन्दा. चार्यप्रणीत नाटकसमयसार अन्धका भाषापद्यानुवाद करना। प्रारंभ किया। भाषा साहित्यके भंडारमें यह ग्रन्थ कैसा अद्वितीय, और अनुपम है, अध्यात्म सरीखे कठिन विषयको कैसी सरलता और सुन्दरतासे इसमें कहा है, उसे पाठक तव ही जान सकेंगे, जब एकवार उक्त पुस्तकका आद्यन्त पाठ कर जावेंगे । संवत् १९९३ ॐकी आश्विन शुक्ला त्रयोदशीको यह ग्रन्थ पूर्ण किया गया है, ग्रन्थकी अन्त्यप्रशस्तिसे प्रगट होता है।। ___ संवत् ९६ का वह दिन कविवरके लिये बहुत शोकप्रद हुआ जिस दिन उनके प्यारे इकलौते पुत्रने शरीर छोड़ दिया । ९ व के एक होनहार चालकके इस प्रकार चले जानेसे किस मातापिताको शोक न होता होगा? अबकी वार कविवरके हृदयमें गहरी चोट बैठी, उन्हें यह संसार भयानक दिखाई देने लगा। क्योंकि नौ बालक हूए मुवे, रहे नारिनर दोय । ज्यों तरुवर पतझार है, रहें ढूंठसे होय ॥ वे विचार करने लगे किPREMAMMITTE thi.thakthitraartikarkatakkutakkintakుడుముని మనుమడు ke utente te L
SR No.010701
Book TitleBanarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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