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________________ retiriktiministratistatistitudent.ttitute जनग्रन्थरताकरे . AMA - - हित्यकी उन्नति न होकर एक विशेष मापासाहित्यकी उन्नतिहोती है। से भारतवर्ष वैदिक धर्मानुयायियोंके मिलानमें जैनियोंकी मंग्या ।। शतांश भी नहीं है, और जबसे भाषासाहित्यका प्रचार हुआ है, तवसे प्रायः यही दशा रही है। राज्यसत्ता न रहनसे इन ४००मी ५०० वर्षोंमें जैनियोंकी किसी विषयमें यथार्थ उन्नति भी नहीं में हुई है, परन्तु आश्चर्य है कि, इस दशामें भी जैनियोंका भापासा. शहित्य वैदिक भाषासाहित्यसे न्यून नहीं है। समयके फेरसे जैनि योंके संस्कृतसाहित्यके अस्तित्वमें भी लोगोंको शंकायें होने लगी * थी, परन्तु जब काव्यमालाने जन्म लिया, डा. भांडारकर और पिटर्सनकी रिपोर्ट जैनियोंके सहस्रावधि ग्रन्थोंके नाम लेकर प्रकाशित हुई वंगाल एशियाटिक सुसाइटीने जनग्रन्थोंका मापना प्रारंभ किया और जब विद्वानों के हाथोंमें यशस्तिलकचम्पू, धर्मशर्माभ्युदय, नेमिनिर्वाण, गद्यचिंतामणि, काव्यानुशासन आदि । काव्यग्रन्ध, शाकटायन कातंत्रप्रभृतिव्याकरण, सप्तभंगीतरंगिणी, स्थाद्वादमंजरी, प्रमेयपरीक्षादि न्यायग्रन्थ मुद्रित होकर मुशोभित हुए; तव धीरे २ उनकी वे शंकाये दूर हो गई। इसी प्रकार वर्तमानमें भाषासाहित्यके ज्ञाता जैनियोंके भाषासाहित्यसे अनभिन्न हैं। परन्तु उस अनभिज्ञताके दूर होनेका भी अब समय आ रहा है। हमलोग इस विषयमें यथाशक्ति प्रयत्न कर रहे हैं। प्रत्येक भाषाके साहित्यके गद्य और पद्य दो भेद हैं, इनमें वैदिक साहित्यमें जिस प्रकार पधग्रन्थोंकी बहुलता है, उसी प्रकार जनसाहित्यमें गपग्रन्योंकी बहुलता है । भापासाहित्य विषयों कमी २ यह निर्देश किया जाता है कि, भापाकवियोमें गयलिवन intet-t.ttatstant.krist.tituttitutettotrket.antt.ttituteTrukatstitutet.ia- nittinutntatoes
SR No.010701
Book TitleBanarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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