SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 81
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैनप्रत्यरत्नाकर Httttttitiktattitutettottotkekuttitiktatutiket-ttitutttttitutetteketst.th कर हुक्म दिया, इनको और इनके साथियोंको इसीसमय वांध लो। इसपर दीवानसाधने उन्हें छेड़ा । कहा कि, उतावली नहीं करनी ३ चाहिये । अभी रात्रिको चोर साहका पूरा २ निश्चय नहीं हो सक्ता, जब तक सवेरा न हो, इन्हें पहिरेमें रखनेकी व्यवस्था कीजिये । सबैरे जैसा निश्चय हो, कीजियेगा । दीवानसा की बात मान ली गई और सब लोग पहिरेम रखे गये । उन्हें यह मी आज्ञा दी गई कि, "घाटमपुर, कुर्रा, वरी आदि तीन चारनामोंमसे यदि तुम अपनी विश्वस्तताके विषय साक्षी उपस्थित कर सकोगे, तो छोड़ दिये जाओगे अन्यथा तुम्हारा कल्याण नहीं है।” सब लोग चले गये, रात्रि आधी वीतगई, चिन्ताके मारे हम लोगोंके पास नींद खडी भी नहीं हुई। जब कि नगरमरमें वह अपना चक्र चलाके प्रायः सवको प्राणहीन कर चुकी थी। नाना सोच विचारोंमें मेरा कलेजा उछल रहा था कि, ॐ एकाएक महेश्वरी कोठीवालने कहा " मित्र! अपनी रक्षाका द्वार निकल आया। मुझे अब स्मरण हो आया कि, मेरा छोटामाई पासके इसी वरी आममें विवाहा है। अब कोई चिन्ता नहीं है। मेरेशुष्क हृदयमें आशालताका संचार हुआ; पर एकप्रकारसे संदेह वना ही रहा, क्यों कि इतने विलम्बसे महेश्वरीने जो बात कही है, उसमें कुछ कारण अवश्य है, जो सर्वथा विपत्तिसे खाली नहीं हो सक्ता । * सबरा हो गया, दीवान और कोतवालकी सवारी आ पहुंची। साथ ॐ में हम १९ आसामियोंके लिये शूली मी तयार की हुई लाई गई, इन्हें देखते ही दयालु-हृदय पुरुष कांप उठे! कि आज किन ३ अभागोंके दिन आ पहुंचे! हम लोगोंसे साक्षी मागी गई । महेअश्वरीने वरीमें अपनी ससुरालकी बात कही। इसके सुनते ही ॐ हम सब लोगोंको पहिरेमें छोडके और महेश्वरीको साथ लेके M AINMENTATION tattattitutikattitnxxtrtikrinkit-trakatekat.kkakutekakkaketatititst.titutatutntatitis प
SR No.010701
Book TitleBanarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy