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________________ ७८ कविवरवनारसीदासः । #1 wwwww खोटा रुपया दे आया है । विप्रने कहा तू शठ बोलता चोखा देके आया हूं | बस ! दो चार बार की 'मैं मैं तु. व. 1 वन पडी । विप्रजीने सराफको खूब मार जमाई। लोगोंने बीच बचाब बहुत करना चाहा, पर चौबेजी कब माननेवाले देवता थे ! सराफका एक भाई मदद करनेके लिये दौड़ा हुआ आया । पर चौबेजीके आगे लडनेमें बचाकी हिम्मत नहीं पड़ी। इसलिये एक जालसाजी सोची । ठीक ही है "लो वटसे नहीं जीता जावे उसे अकलसे जीतना चाहिये।" ब्राह्मणके कपडोंमें २५) रु० और भी बंधे हुए थे, उन्हें सराफ के भाईने खोल लिये और "ये भी सच बनावटी तथा खोटे हैं " ऐसा कहता हुआ कोतवाल के पास पहुंचा। मार्ग में चौबेके असली रुपयोंको कहीं चला दिये और बनावटी रुपये कोतवाल के सन्मुख पेश किये और बोला "दुहाई सरकार की ! नगरमें बहुतसे ठग आये हुए हैं, वे इसी तरह हजारों खोटे रुपया चला रहे हैं। और ऐसे जबर्दस्त हैं कि, लोगों को मारने पीटनेसे भी वाज नहीं आते। मेरे भाईको मार २ के अधनुआ कर डाला है । दुहाई हुजूर ! बचाइयो !!" कोतवालने इस वणिककी रिपोर्टको नगरके हाकिमतक पहुंचाई । हाकिमने दीवान साः को तहकीकात के लिये भेज दिया। संध्याका वक्त हो गया था, कोतवाल और दीवानकी सवारी सरायमें पहुंची । नगरके सैकड़ों आदमियों की सवारी भी सरायमें जा जमी । वडा जमघट्ट हुआ। कोतवाल और दीवानके सामने विप्र हाजिर किये गये । इजहार होने लगे । पहिले उनके नाम ग्रामा1 दि पूछे गये, फिर रुपयोंके विषयमें पूंछतांछ की गई। लोग नानाप्रका रकी सम्मतियां देने लगे । कोई बोले ठग हैं, कोई पाखंडी बेपी हैं, कोई बोले मालूम तो भले आदमी से होते हैं। कोतवालने सबकी सुन सुना 1
SR No.010701
Book TitleBanarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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