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________________ amtattatuttitute tattattattattatatattatotttta जैनग्रन्थरत्नाकरे ६७ देती हूं। इन्हें मैंने अपने प्राणोंमसे निकाले हैं। आप ले जाइये और व्यापारमें लगाइये ।" भाग्यशाली बनारसी भार्याकी कृतिपर अवाक् हो रहे । हां, न, कुछ भी नहीं कहा गया ! रजनी विविधविचारोमें पूर्ण हो गई। ॐ दूसरे दिनसे व्यापारकी ओर चित्त लगाया गया। कपडा, मोती, माणिक्यादि खरीदना शुरू किया। इस तयारीमें और श्वसुरालयके सत्कारमें चार महीने गत हो गये । अवकाश बहुत मिला, इसलिये कविता भी समय २ पर अल्पवहुत की गई। अजितनाथके छन्दों और धनंजयनाममालाके दोसौ दोहोंकी रचना इसी समय की। पश्चात् अगहनसुदी १२ को माल भराके आगरेकी ओर रवाना हुए। अबकी बार कटलेम माल उतारा। समयपर श्वसुरके घर भोजन करना, बाजारमें कोठीपर सोना, और दिनमर दूकानमें बैठना, बस यही उस समयका नित्यकर्म था । समयकी बलिहारी ! कपडेका मात्र बिलकुल गिर गया। विक्री एकदम गिर गई । अतः बजाजीसे हाथ धोकर मोती माणिक्यों में चित्त दिया । मोतीका एक हार जो ४०) 1 में खरीदा था, ७०) में बेचा।३०) लाभ हुआ, इससे संतोषहुआ। तव आपने विचार किया, कि आगामी कपडेका व्यापार कमी नहीं करना, जवाहिरातका ही करना । देखो! सहन ही यौन दून हो गये। श्रीमाल-खोबरागोत्रज वेणीदासजीके पौत्र नरोत्तमदास, बालचन्द और बनारसीदास इन तीनोंमें बडी गाढ़ी मैत्री थी। ये तीनों रात्रिंदिन १ वनारसीविलास-पृष्ठ १९३ । २ नाममाला एकवार हमारे देखनेमें आई थी, परन्तु फिर बहुत खोज करने पर भी नहीं मिली। वही अच्छी-सरल कविता है। MPARAN kakkottttitutekuttotketstar kitatutkukkuttekuttttttituttakuttitutikatta Notekstatutetitutetitectukat.k.ket-titrekkukri kukutekuttitutkrt.tterstitut.ttetitut.krt.it
SR No.010701
Book TitleBanarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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