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________________ जैनग्रन्थरत्नाकरे vt.kuttrkatikskitek-kakakakeksituatikat.kakakakistatutiktattutotketaketakakakakakakkakkriti पतिप्राणा स्त्री पतिके सम्मुख कुछ समयको स्तमित हो रही, कुछ स-है। समयको पति भी स्थकित हो रहा । दोनों के पारलिक शरीरोंने इस प्रकार सब ओरसे मौन धारण कर लिया। परन्तु यह शरीर क्रिया ऐसी ही नहीं बनी रही, पतिप्राणास्त्रीने साहस करके कुछेक अस्फुटित खरोंसे प्राणपतिकी शारीरिक कुशलता पूछी, औरस्वामीसे सुन्दर शब्दोंमें उत्तर पाया । पश्चात् व्यापारसम्बन्धी प्रश्न किये, जिनका उत्तर पतिन मनगढन्तकरके अयथार्थ देना चाहा, क्योंकि बीती कथा कहनेके योग्य नहीं थी, परन्तु अगिनी भावमंगीसे उनका अवाक्छल ताड़ गई, और अपनी सेहचतुराईसे शीघ्र ही पतिका आन्तरिक विषय जानने में सफलमनोरथा हुई । बनारसीदासजी अपनी प्रियतमासे कुछ छुपाकर न रख सके । जिन दम्पतियोंके दो शरीर एक मन हैं, उनके बीचमें कपट को स्थान कब मिल सका है ? पतिकी दिशाका अनुमानकर साध्वी स्त्रीने आजकलकी स्त्रियोंकी नाई पैसेकी प्रीति नहीं दिखलाई । वडी गंभीरतासे पतिको आश्वासन दिया । और कहा समय पायके दुख भयो, समय पाय सुख होय । होनहार सो द्वै रहै, पाप पुण्य फल दोय ॥ ३७६ ॥ इसप्रकार नाना सुखशोकके संभाषणोंमें और संयोग वियोगके चिन्तवनमें रात्रिकाल शेष हो गया। संयोगकी रातें बहुत छोटी होती हैं। शीघ्र ही सबेरा हो गया। दिवसमें एकान्त पाकर उस पतिप्राणा स्त्रीने अपने पतिके करकमलोंमें २०) रु. कहीसे लाके रक्खे और हाथ जोरके कहाये मैं जोरि धरे थे दाम । आये आज तुम्हारे काम। साहिय! चिन्तन कीजे कोय। 'पुरुष जिये तो सब कछुहोया' Postaketitutikskrtikartatikuttitutatutekakikahikikiki kikikattitutettituttituitatuteta तलमayiलन + + + + + + + + + +
SR No.010701
Book TitleBanarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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