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________________ Ft.tt.tt-tit-ttitut-tistatist-thistations जैनग्रन्थरनाकरे St-t-t-tetntatutekutttt.tattituttitutatutetitutitut.kkkukurst.tta योका बडा सगृह था, उनमें वासुसाहजी गुग्ग्य थे। बारमाह अध्यात्मक अच्छ विद्वान् थे । इनके पुत्र भगवतीदासीन बनारसीदासजीका सत्कार किया, और एक उत्तम न्यान रहनको दिया। खरगसनजीका कुटुम्ब फतहपुरमें आनन्दो रहन लगा परन्तु कुछ दिन पीछे ही उन्होंने पत्र लिम्बके बनारसीदाससहित इलाहाबाद बुला लिया। इलाहाबादमें उस समय जवाहिरातका ब्यापार अच्छा चटका था। दानाशाह सरकारकी जवाहिराती फरमायाको खरगसेन ही पूरी करते थे। पितापुत्र चार महीने इलाहाबाद रहे, पश्चात् फतहपुर आके कुटुम्बसे मिलें । इसी समय जुबर लगी कि, नवाबकुलीच आगरेको चला गया है, जौनपुरमें सब ये भगवतीदासजी कविता भी करते थे, परन्तु नाहविलास के निर्माता ये नहीं हैं। क्योंकि वनाविलासके या पिताका नाम लालजी था, और इनके पिताका नाम वासूलाह था । प्राविलापक कती आगराके रहनेवाले थे, और ये जानपुरके थे। इसके अतिरिक ब्रह्मविलासग्रन्धकी रचना संवत् १७५० में हुई है और यह गगन १६५० का है। पुरुषका इतना वसा जीवन होना असम्भव है । नाद समयसारके अन्तमें भी एक भगवतीदासका नाम आया है, जो आग रेमें रहते थे, और उक्त कविवरके पांच मित्रोमें अन्यतम थे। रूपचन्द पंडित प्रथम, इतिय चतुर्भुजनाम। तृतिय भगवतीदास नर, कंवरपाल गुणधाम ॥ ११ ॥ धर्मदास ये पांचजन, x x x x x अथवा जॉनपुरके भगवतीदासजी ही कदाचित् ये हो, और मागरे । आ रहे हो। १ दानाशाह कौन ! यहीं शाहदानियाल तो नहीं जो असर बाद मादका छोटा पाहजादा था और इलाहाबासमें कुछ दिनों तक रसमा फुरलीचो उसका अतानीक (गाडिंयन) था। Prakrtert.trint.tiwarret: t.ttriotstart-katrina.tattit-triantri-art.ttrut
SR No.010701
Book TitleBanarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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