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________________ evatamaayate १३६ कविवरवनारसीदासः । में सम्पूर्ण जौहरियोंको पकड़वाके बुलवाया, और एक बड़ा मारी नग । मांगा, परन्तु उस समय जौहरियोंके पास उतना बड़ा जितना हाकिम चाहता था, कोई नग नहीं था। इसलिये वेचारे नहीं दे * सके । इसपर हाकिमका क्रोध और भी उवल उठा । उसने सबको एक कोठरीम कैद कर दिये । और जब कुछ फल नहीं हुआ तब सवेरे सवको कोड़ोंसे (दुरोंसे) पीट र के छोड़ दिया। इस अत्याचारसे अतिशय व्यथित होकर सम्पूर्ण जौहरियोंने सम्मतिपूर्वक नगर छोड़ दिया और सब यत्र तत्र चले गये । खरगसेनजीने भी अपने भी परिवारसहित पश्चिमकी और गमन किया। हाय! उस राज्यमें कैसा अन्याय था। गंगापार कडामाणिकपुरके निकट शाहजादपुर नगर है। वहां तक आते २ मूसलाधार पानी वरसने लगा, घोर अंधकार छा गया । मार्ग कीचड़से पूर्ण हो गये, एक पैड चलना भी कठिन हो गया । लाचार शाहजादपुरकी सरायमें डेरा डालना पड़ा । उस attituttitutnakot.kettottituttttttttitanketrait kottotakuttituttikkistan sxskskskskskskskaitri..sxskskskskritrkattatokekakka xexxkekrkukkakkarxxxseksikakk सन् १०१४ (संवत् १६६२)में जहांगीर वादशाहने उसको गुजरातमें बदल दिया, और सन् १०१६ (संवत् १६६२) में वह फिर लाहोर भेजा गया। सन् ६ जहांगीरी (संवत् १६६९) में कावुल और अफगानिस्थानके बंदोवस्तपर मुकर्रर होकर गया, जहां सन् १०२३ (संवत् १६७१) में मर गया। __वनारसीदासजीने जो संवत् १६५५ में कुलीचखांका जोनपुरमें होना लिखा है, सो सही है। क्योंकि प्रथम तो जोनपुर कुलीचवांकी जागीरमें ही था। दूसरे संवत् १६५३ में उसकी तईनाती भी इलाहाबाद सूर्वमें हो गई थी, जिसके नीचे जोनपूर भी था। TANT
SR No.010701
Book TitleBanarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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