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________________ 24+++ +4444 PATALAMGARH ANARACHANASA tette M AIAMARPAAAAAA Aketskut.k.kkk.t.itttitut. Recketertatutkukkukkuttakutaketitutekakakakakakutkukkutekkkkkutekatrket २०८ जैनग्रन्थरत्नाकरे सुनार लोहार सिकलीगर हवाईगर, धीवर चमार एही छत्तीस पवुनियाँ ॥ १५ ॥ एक सौ अड़तालीस प्रकृति वस्तु छन्द सत्ततुहि सततुहि तुरीय गुण थान ।. तह तीन व्युच्छतिभई नवठाण छत्तीस जानहु । दशमें पुनि इक लोभ वारमें सोलह खिपानहु । वहत्तर तेरम नसे, तेरह चौदम एवि।। एम पैड़ि अड़ताल सौ, होय सिद्ध तोडेवि ॥ १६ ॥ छप्पय । ___ एक जान द्वै तोरि, तीन रम चार न भासहु । पंच जीत पटराख, सात तज आठ विनाशहु ॥ नव संभारि दश धारि, ग्यारमहिं बारह भावहु । तेरह तिर चौदहें चढ़त, पन्द्रह विलगावहु ॥ सोलहन मेटि सत्रह मजहु, अट्ठारह कह करहु छय । ' असम गणि उनीस वीसहिं विरचि, वानारसि आनंद मय १७ ।। वात्पर्य-दोहा। शुद्ध आतमा एक जिन, राग द्वेष द्वय बंध। । तीन शुद्ध ज्ञानादि गुण, चारों विकथा धंध ॥ १८ ॥ प्रबल पंच इन्द्री सुभट, षट विधि जीवनिकाय । जुआ आदि सात्रों व्यसन, अष्टकर्म समुदाय ॥ १९॥ krt.tt..trittitut-titutekatukuteketititik.kuttekstitut,
SR No.010701
Book TitleBanarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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