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________________ MAN वनारसीविलासः १९५९ अथ शान्तिनाथजिनस्तुति. वाक्रीमहम्मद खानके चंदवाकी द्वारा। सहि एरी! दिन आज सुहाया मुझ माया आया नाहिं घरे। सहि एरी ! मन उदधि अनन्दा सुख, कन्दा चन्दा देह घरे ॥ चन्द निवां मेरा वल्लम सोहै, नैन चकोरहिं सुक्खं करै। जगज्योति सुहाई कीरतिछाई, बहु दुख तिमरवितान हरै॥ सहु कालविनानी अप्रतवानी, अरु मृगका लांछन कहिए। * श्रीशान्ति जिनेशनरोत्तमको प्रभु, आज मिला मेरी सहिए! सहि एरी ! तू परम सथानी, सुरज्ञानी रानी राजत्रिया। सहि एरी! तू अति सुकुमारी, वरन्यारी प्यारी प्राणप्रिया ॥ प्राणप्रिया लखि रूप अचमा, रति रंमा मन लाज रहीं। अकलौत कुरंग कौलं करि केसरि, ये सैरि तोहि न होंहि कहीं॥ अनुराग सुहाग भाग गुन आगरि, नागरि पुन्यहि लहिये। मिलिं या तुझ कन्त नरोत्तमको प्रमु, धन्य सयानी सहिये।२।। दोहा। विश्वसेन कुलकमलरवि, अचिरा उर अवतार। धनुष सु चालिस कनकतन, बन्दहुं शान्ति कुमार ॥ ३ ॥ त्रिभंगी छन्दः (३०,६,८,६) गजपुर अवतारं, शान्ति कुमार, शिवदातारं, सुखकारं । निरुपम आकार, रुचिराचार, जगदाधारं, जितमार । १ सखि | ये, १ कमल, ३ समान, ४ कामदेवके जीतनेवाले. सललल art.titutatutekkut
SR No.010701
Book TitleBanarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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