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________________ WHAARAAN treatok totkotakektakkarkikt.kot.itatatatatay ११९० जैनग्रन्थरत्नाकरे * सुखदुखत्यागबुद्धि सुखरेखा। दुख विपयारस भोगविशेखा ॥ पंडित बंध मोक्ष जो जानै । मूरख देहादिक निज मान ॥१६ मारग श्रीमुख आगम भापा । उतपय कुधी कुमन अभिलापा सुकृतिवासना स्वर्गविलासा । दुरित उछाह नर्क गतिवासा॥१७|| में बंधव हिंतू स्वर्ग सुख दाता । गृह मानुपी शरीर विख्याता ॥ ॐ धनी सो जु गुणरत्नभंडारी। सदा दरिद्री तृप्णाधारी ॥ १८ ॥ * कृपण सो जु विषयारसलोमी। ईश्वर त्रिगुणातीत अछोभी॥ ॐ बहुत कहां लगि कहों विचक्षण। गुण अरु दोष दोहुके लक्षण १९ ।। दोहा। दृष्टि सुगुन अरु दोपकी, दोष कहावै सोय। गुण अरु दोष जहां नहीं, तहाँ गुन परगट होय ॥२०॥ इति प्रश्नोत्तरमालिका, उद्धवहरिसंवाद । भाषा कहत वनारसी, भानुसुगुरुपरसाद ॥ २१ ॥ इति प्रश्नोत्तरमालिका. Rt.titiuntant.tattitutert.titutitutt.... tree teekortet ietskretsetestetietetretettebetastatnettet er dette ikke अथ अवस्थाष्टक लिख्यते. दोहा। चेतनलक्षण नियतनय, सबै जीव इकसार । __मूढ विचक्षण परमसों, त्रिविधि रूप व्यवहार ॥ १॥ मूढ़ आतमा एक विधि, त्रिविधि विचक्षण जान | द्विविधि भाव परमातमा, पविधि जीव बखान ॥ २॥ titutiktikukurtatuttituttituttitute
SR No.010701
Book TitleBanarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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