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________________ -ra..MNAMAARAN rottt.t.t.tist-t-2-22-22-Mittttttart * जैनग्रन्थरलाकरे २०. mermanenerr ... rint __ बालक खरगसन अपने नानाके घर मुम्बस रहने लगा। आठ वर्षकी उमर होने पर उसने पढना प्रारंभ किया और धोदे ही दिनों हिसाव किताच चिट्ठीपत्रीकेकार्यमें व्युत्पन्न हो गया। योग्य वय होनेपर नानाके साथ सोना चांदी और जवाहिरातका व्यापार सीखने लगा। और व्यापार कुशल होनेपर नामान्तरोंम भी आने जाने लगा। एक दिन खरगसेनने अपनी मातास मंत्र लेकर नानाकी मम्मतिक बिना ही एक घोडेपर सवार होकर बंगालकी और कूच कर दिया और से वह कई मंजिल तय करके इच्छित स्थानपर जा पहुंचा । उस समय sattrkuteketat-kokek.kettrittekets इस तरह बनारसीदासजीके लेखकी विधि मिल सकती है। जोनपुरमें जो बनारसीदासजीने जवाहिरातका व्यापार होना लिसा है, सो भी सही है क्योंकि जोनपुर आगरे और पटने बीचमें बढ़ा भारी पाहर था, और जब वहां वादशाही थी, उस वक्त तो दारी दिली ही बना हुआ था, ४ कोसमें वसता था। इलाहाबाद बसनेके पीछे जोनपुर उसके नीचे कर दिया गया था। आईने अकबरी में जोनपुरके १९ मुहाल लिगे हैं, परन्तु अब अंगरजी अमलदारीमें जोनपुर ५ ही तहसीलोंका जिला रह गया है। जोनपुरकी यन्ती अफवरके समयमें कितनी थी, इसका पता जुगराफिये (भूगोल) जोनपुरसे मिलता हाउसमें लिखा है कि, अश्वर यादमा हने गरीबोंकी आंसका इलाज करनेकेलिये एक हकीमको भेजा था, पर गरीयोंका मुफ्त इलाज करता था, और मनीरोंको मोल र दया देता है था।ती भी हजार पंद्रही रुपये रोजकी उसको आमदनी हो जाती थी। एक दिन उसके गुनाइतान जब उसने कहा कि, आज नो ५०१, का ही नामा विका है, तब उसने एक बड़ी आह भरी और कहा हाय. जोनपुर गोगन (जजद) हो गया। फिर वह उसी दिन आगरेको चला गया। t.tt-tatt-t-tt-t.ttitutstatetstetetitut-tet-zett.tr - - - - - TRATI + + + + + +
SR No.010701
Book TitleBanarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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