SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 304
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ satttiktattattattatastetstattatt thetititle १८४ जैनग्रन्थरत्वाकरे tituttetutukatettatatatatatatatakutukututitttttttttttttttttttttttt शुकल ध्यान रथ चढे सयाना । मुक्तिपन्थको करै पयाना ॥ रहै अजोग जोगसों बागी । वहै महारथ रथको त्यागी ॥१२॥ ये दशदान जु मैं कहे, सो शिवशासनमूल । ज्ञानवन्त सूक्षम गहै, मूढ़ विचारै थूल ॥ १३ ॥ ये ही हित चित जानको, ये ही अहित अजान । रागरहित विधिसहित हित, अहित आनकी आन ॥१४॥ इति दशदानविधान, अथ दश बोल लिख्यते. चौपाई. जिनकी मांति कहों समुझाई । जिनपद कहा सुनो रे भाई ॥ धर्म खरूप कहावै ऐसा । सो जिनधर्म वखानौ जैसा ॥ १ आगम कहो जिनागम सांचा । चरणों वचन और जिन वाचा मत भाषहुँ जिनमत समुझावहुं । ये दश बोल जथारथ गाव ॥२ जिन-दोहा। सहज बन्धवंदक रहित, सहित अनन्तचतुष्ट । जोगी जोगअतीत मुनि, सो जिन आतम सुष्ट ॥ ३॥ जिनपद । विधि निषेध जानै नहीं, जहँ अखंड रस पान । विमल अवस्था जो धरै, सो जिनपद परमान ॥ ४ ॥ धर्म। लहिये वस्तु अवस्तुमें, यथा अवस्थित जोय । जो स्वभाव जामै सधै, धर्म कहावै सोय ॥ ५ ॥ Attituttitutictikkuttitutkukkakakkukutkukkutek-kkkkk.ttituttitutitutituti
SR No.010701
Book TitleBanarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy