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________________ Dattat.ttatutetstatuttitut.ttattat.ttutiststarthi १८० जैनग्रन्थरत्नाकरे । a www FLtutetit.ttatutituttitutsukrt. t Tantetatatutstatutekeketakuttukatutotokutiktatitutituttakakakakikattttttakist.tatt रोगी दरिद्रपीड़ित पुरुष, वृद्ध नारि रसगृद्धचित । एते विडम्ब संसारमें, इन सब कहँ धिक्कार नित ॥ ६ ॥ प्रात धर्म चिन्तवै, सहजहित मंत्र विचारै। चर चलाय चहुं ओर, देशपुर प्रजा सम्हार ।। राग द्वेष हिय गोप, वचन अम्रत सम वोले। ॐ समय ठौर पहिचान, कठिन कोमल गुण खोले । निज जतन करै संचय रतन, न्यायमित्र अरि सम गर्ने । रणमें निशंक है संचरै, सो नरेन्द्र रिपुदल हनै ॥ ७॥ कृपण बुद्धि यश हनें, कोप दृढ़ प्रीति विछोरै। दम विध्वंसै सत्य, क्षुधा मर्यादा तोरे ॥ कुव्यसन धन छय करै, विपति थिरता पद टारइ। . * मोह मरोरै ज्ञान, विषय शुभ ध्यान विडारइ ॥ अभिमान विछेदै विनय गुण, पिशुनकर्म गुरुता गिलै। कुकलाअभ्यास नासहि सुपथ, दारिदसों आदर टलै ॥ ८ ॥ तियवल योवन समय, साधुवल शिवपथ संवर । नृपबल तेज प्रताप, दुष्टबल वचन अडम्बर । निर्धनवल सुमिलाप, दानिसेवा याचकवल। वाणिजबल व्यवहार, ज्ञानबल वरविवेकदल ॥ विद्या विनय उदारवल, गुणसमूह प्रभुवल दरव। . परिवार स्वबल सुविचार कर, होहिं एक समता सरव ॥९॥ १. जासूद. titutitutistictet.t.tttituttitutstatutix.tutekuta - - लावलाजामातालकलाललल + + + + + + + + + + + + + + + +
SR No.010701
Book TitleBanarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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