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________________ attituttitist.tatistituttitutatist.tatttttain . बनारसीविलासः httrakattitut.kekukki.kutkukkukkukrinkukkukrketkutkurt.cuttek-ketituttitutiktan युवति प्रेम वश करिय, साधु आदर वश आनिय । __ महाराज गुणकथन, वंधु समरस सनमानिय ॥ * गुरुनमन शीस रससों रसिक, विद्या बल बुधि मन हरिय । हर * मूरख विनोद विकथा वचन, शुम स्वभाव जगवन करिय ॥३ . ॐ जाचक लघुपद लहै, काम आतुर कलंक पद । लोभी अपजस लहै, असनलालची व्है गद ॥ उन्नत लहै निपात, दुष्ट परदोष लह तकि। कुमन विकलता लहै लहै संशय जु रहै चकि ।। अपमान लहै निर्धन पुरुष, ज्वारी वहु संकट सहै। जो कहै सहज करकश वचन, सो जग अप्रियता लहै ॥ ४ ॥ शिथिल मूल दिढ करै, फूल चूरै जलसींचै । ऊरघ डार नवाय, भूमिगत ऊरथ खींचै ।।। ने मलीन मुरझाहिं, टेक दे तिनहिं सुधारइ । कूड़ा कंटक गलित पत्र, बाहिर चुन डारह ॥ लघु वृद्धि करइ भेदै जुगल, वाडि सवारै फल भखै । 'माली समान जो नृप चतुर, सो विलसै संपति अखे ॥ ५॥ मूढ़ मसकती तपी, दुष्ट मानी गृहस्थ नर ।। नरनायक आलसी, विपुल धनवंत कृपण कर ॥ धरमी दुसह स्वभाव, वेद पाठी अघरम रत । पराधीन शुचिवन्त, भूमिपालक निदेशहत ।। रोग.' Attitutntukattitutikittikaitutitutkukkaketaketitititikatukutekuttek RRitiktakka ylyayuys . + + + + + +
SR No.010701
Book TitleBanarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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