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________________ x kakukkukkakakakakakakakitat.kek.kkkukkukattatokatatkekat.ki.kutakiki statek.kokatak ketstakat.ttikttekistaketxt.ttatreet कविवरवनारसीदासः। commmmmmmmmmmmmmmmm arrammame... .. .. पूर्व वंशधरोंकी कथा। __ मध्यभारतमें रोहतकपुर नामक एक नगर है। उसके । विहोली नामका एक ग्राम है । बिहोलीमें राजपूतोंकी वस्त वहां कारणवश एक समय किसी जैनमुनिका शुभागमन हुआ। मुनिराजके विद्वत्तापूर्ण उपदेशों और लोकोत्तर आचरणोंसे मुग्ध से होकर ग्रामवासी सम्पूर्ण राजपूत जैनी हो गये, और____ पहिरी माला मंत्रकी, पायो कुल श्रीमाल।। थाप्यो गोत विहोलिआ, बीहोली-रखपाल ॥ अर्थात् नवकारमंत्रकी माला पहिनके श्रीमालकुलकी स्थापना की और विहोलिया गोत्र रक्खा । बोहोलिया कुलने खूब वृद्धि पाई ॐ और दूर २ तक फैल गया । इस कुलमें परंपरागत बहुतफाटके पश्चात् गंगाधर और गोसल नामके दो पुरुष हुए । गंगाधरके । वस्तुपाल, वस्तुपालके जेठमल, जेठमलके जिनदास और जिनदासके मूलदास उत्पन्न हुए। मूलदासजी हिन्दी फारसीके ज्ञाता थे । यथा, मूलदास जिनदासके, भयो पुत्र परधान । पढ्यो हिन्दुगी फारसी, भागवान वलवान । मूलदासजी की वणिक वृत्ति थी । अपनी विद्वत्ता और सचाईके कारण वे मुगलवादशाहके परम कृपापात्र हो गये थे। मालवा के ॐ नरवर नामके नगरमें हुमायूं के किसी उमराव को वहां जागौर प्राप्त हुई थी। यथा--- atttttttttttttttttttttt AAAAAAA ALE wakcexx हिन्दी । २ आफिसर । कलमaanyar ++ क IYIYAYayaPRE """ YYYYiy + + + + LALES श
SR No.010701
Book TitleBanarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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