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________________ जेनग्रन्थरताकरे tattvarttitiktikitsittitikttaketikitatikatestettitut.kituttitutikatta सजलजलदतन मुकुट सपत फन, कमठदलनजिन नमत बनरसि ॥२॥ (सर्व इस्वकारान्त) पदपत्। सकलकरमखलदलन, कमठाठपवनकनकनग। धवलपरमपदरमन, जगतजनममलकमलखग ॥ परमतजलघरपवन, सजलयनसमतन समकर। परवघरजहरजलद, सकलजननत भवभयहर। यमदलन नरकपदछयकरन, अगमसतरमवजलतरन । ॐ वर सबलमदनवनहरदहन, जय जय परमभयकरन ॥३॥ मनहरण! जिनके वचन उर धारत जुगलनाग, भये धरणेद्र पदमावति पलकमें। जाकी नाम महिमा सो कुचातु कनक करे, पारस पापान नामी भयो है खलकम ॥ जिनकी जनमपुरी नामके प्रभाव हम, आपुनो स्वरूप लस्यो भानुलो भलकमें। तेई प्रभु पारस महारसके दाता अब, दीजे मोहि साता इंगलीलाकी ललकमें ।।। उक्त तीन छन्द विशेष मनोहर और युक्ति पूर्ण हैं, इसलिये हमको हयात् उद्धृत करना पड़े हैं। चरित्रसम्बन्धी इनसे केवल इतना ही सारांश लेना है कि, कविवर पार्थमुपावनापने इष्ट मानते थे। rist-tstatutix.trketstotrt.krint.tittnt.tetstretst.tttituttitutatute १ गूख कमट रूपी वायुको अवल नगेटकं समान ।
SR No.010701
Book TitleBanarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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