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________________ santstakathartatistituttitunitatistitutetothkaistory १८. जैनग्रन्थरत्नाकरे witutettitutatuttitutetakikatokottitutkukkut.kotketstatutekakakakakikat.kix ज्यो शरीर कृश सहज; सुशोभा देत है । सूज थूलता वढे; मरनको हेत है ।। ६३ ॥ - शार्दूलविक्रीडित। ॐन ब्रूते परदूपणं परगुणं वक्त्यल्पमप्यन्वहं संतोपं वहते परद्धिषु परावाधासु धत्ते शुचम् । स्वश्लाघां न करोति नोहति नयं नौचित्समुल्लङ्घयत्युक्तोऽप्यप्रियमक्षमा न रचयत्येतचरित्रं सताम् ॥६॥ पट्पद। नहिं जपै पर दोप; अल्प परगुण बहु मानहि । * हृदय धेरै संतोप; दीन लखि करुणा ठानहि ॥ उचित रीत आदरहि विमल नय नीति न छंडहि । निज सलहन परिहरहि राम रचि विषय विहंडहि ॥ मंडहि न कोप दुर बचन सुनः सहज मधुर धुनि उच्चरहि । ___ कहि कवरपाल जग जाल वसि;ये चरित्र सज्जन करहि।।६४ गुणिसंगाधिकार. धर्म ध्वस्तदयो यशश्युतनयो वित्तं प्रमत्तः पुमा काव्यं निष्प्रतिभस्तपः शमदमैः शून्योऽल्पमेधः श्रुतम् । वस्त्वालोकमलोचनश्चलमना ध्यानं च वाञ्छत्यसो यः सझं गुणिनां विमुच्य विमतिः कल्याणमाकाङ्क्षति॥ मत्तगयन्द (सवैया )। सो करुणाविन धर्म विचारत; नैन विना लखिवेको उमाहै। सो दुरनीति धरै यश हेतु, सुधी विन आगमको अवगाहै ॥ JActrkikut.tit-tatut-tut.kettrnktukikutt.ket-t.kutt-titutkukkakutekakkuktik
SR No.010701
Book TitleBanarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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