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________________ बनारसीविलासः www www वसन्ततिलका | सौजन्यमेव विघाति यशवयं च ( १६ मान्ना ) चौपाई | बरु अहिवदन हत्थ निज ढारहिं । अगाने कुंडमैं तनपर जाहि दारहिं उदर करहिं विष भक्षन | पै दुष्टता न गहहिं विचक्षन ६१ स्वश्रेयसं च विभवं च भवक्षयं च । ४७ दौर्जन्यमावहसि यत्कुमते तदर्थम् धान्येऽनलं क्षिपसि तजलसेकसाध्ये ॥ ६२ ॥ गयन्द (सवैया) । ज्यो कृपिकार भयो चितवातुल; सो कृषिकी करनी इम ठाने । बीज बवै न करें जल सिंचन; पावकसों फलको थल भानें ॥ त्यों कुमती निज खारथके हित; दुर्जनभाव हिये महि आन । संपति कारन बंध विदारन; सज्जनता मुखमूल न जाने ॥ ६२ ॥ पृथ्वी । वरं विभववन्ध्यता सुजनभावभाजां नृणामसाधुचरितार्जिता न पुनरूर्जिताः संपदः । कृशत्वमपि शोभते सहजमायतौ सुन्दरं विपाकविरसा न तु श्वयथुसंभवा स्थूलता ॥ ६३ ॥ अभानक छन्द | वर दरिद्रता होय; करत सज्जन कला । दुराचारसों मिले राज सो नहिं भला ||
SR No.010701
Book TitleBanarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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