SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 157
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Diptakot.tottak kattatistiani.sirt.itttttain , बनारसीविलासः kitatukkkukt.katutikattitutikat.k.kutak-tttttit-kit-krkut.kkkkkkkkkkkkok उठे बाद मरजाद मिटै सबः सुजन हंस नहिं पावहिं कूल । बद्धत पूर पूरै दुख संकट; यह परिग्रह सरितासम तूल ।।४।। मालिनी। कलहकलभविन्ध्यः कोपगृध्रश्मशानं व्यसनभुजगरन्धं द्वेपदस्युमदोषः । सुकतवनदवाग्निर्दिवाम्भोदवायुनयनलिनतुपारोऽत्यर्थमर्थानुरागः ॥ ४२ ॥ मनहरण। कलह गयन्द उपजायवेको विधगिरिः ___ कोप गीधके अधायवेको सुस्मशान है। संकट मुजंगके निवास करवेको विल; वैरभाव चौरको महानिशा समान है । कोमल सुगुनपनखंडवेको महा पैन ___पुण्यवन दाहवेको दावानल दान है । नीत नय नीरज नसायवेको हिम रासि; ऐसो परिग्रह राग दुखको निधान है ॥ ४२ ॥ शार्दूलविक्रीडित । प्रत्यर्थी प्रशमस्य मित्रमधृतमोहस्य विश्रामभूः ३ पापानां खनिरापदा पदमसध्यानस्य लीलावनम् । व्याक्षेपस्य निधिर्मदस्य सचिवः शोकस्य हेतुः कले * केलीवेश्म परिग्रहः परिहतेयोग्यो विविक्तात्मनाम् ४३ ।। statutiatitut.t.ttttt...t.ki.kirtant.titutitutikhattituttitut.kuttitut.ttitutik
SR No.010701
Book TitleBanarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy