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________________ t tttt M .. turtittetettekettarkertetetterstatte detectat tetet e trete te toetadati tretett. At ३६ जैनग्रन्थरलाकरे तासु विवेक बढे घट अंतर; सो सुरके शिवके मुख माले। ताकि सुकीरति होय तिहूँ जग; जो नर शील अखंडितपाल॥३०॥ तोयत्यग्निरपि नजत्यहिरपि व्याम्रोऽपि सारगति । ___ व्यालोऽप्यश्वति पर्वतोऽप्युपलति क्ष्वेडोऽपि पीयूपति।। विनोऽप्युत्सवति प्रियत्सरिरपि क्रीडातडागत्यपांनाथोऽपि स्वगृहत्यटव्यपि नृणां शीलप्रभावाशवम् ४० पदपद। अग्नि नीरसम होय; मालसम होय भुजंगम । नाहर मृगसम होय; कुटिल गज होय तुरंगम ।। विष पियूपसम होय; शिखरपापान खंडमित । विघन उलट आनंद; होय रिपुपलट होयहित ॥ * लीलातलावसम उदधिजला गृहसमान अटवी विकट ।। इहिविधि अनेक दुख होहिं सुख; शीलवंत नरके निकट ॥४०॥ ____ परिग्रहाधिकार | कालुप्यं जनयन् जडस्य रचयन्धर्मद्रुमोन्मूलनं क्लिन्नन्नीतिकृपाक्षमाकमलिनी लोभाम्बुधिं वर्धयन् । मर्यादातटमुगुजछुभमनोहंसप्रवासं दिशकिनक्लेशकरः परिग्रहनदीपूरः प्रवृद्धिं गतः ॥४१॥ ३१ मात्रा सबैया। अंतर मलिन होय निज जीवन; विनसै धर्मतरोवरमूल | किलसै दयानीतिनलिनीवन; धेरै लोभ सागर तनथूल ॥ Ritatutst.ttt.tit:*..ttttt.itttt.tttt.tt.karkikit-t-kukkakkrti
SR No.010701
Book TitleBanarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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