SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 148
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २८ जैनग्रन्धरलाकरे ताको आय मिलै सुखसंपति, कीरति रहै तिहूं जग छाय । जिनसों प्रीत बढे ताके घट, दिन दिन धर्मबुद्धि अधिकाय ॥ छिनछिन ताहि लखै शिवसुन्दर, सुरगसंपदा मिलै मुमाय । वानारसि गुनरास संघकी, जो नर भगति करै मनलाय॥२॥ यद्भक्तेः फलमर्हदादिपदवीमुख्य कृपेः सस्यव चक्रित्वविदशेन्द्रतादि तृणवत्प्रासङ्गिकं गीयते । शक्तिं यन्महिमस्तुतौ न दधते वाचोऽपि वाचस्पतेः संघः सोऽयहरः पुनातु चरणन्यासैः सतां मन्दिरम् ॥ जाके भगत मुकतिपदपावत, इन्द्रादिक पद गिनत न कोय । ज्यों कृषि करत धानफल उपजत, सहज पयार घास भुस होया में जाके गुन जस जपनकारन, सुरगुरु थकित होत मदखोय । सो श्रीसंघ पुनीत वनारसि, दुरित हरन विचरत भविलोय २४ ॥ ___ अहिंसा अधिकार । क्रीडाभूः सुकृतस्य दुष्कृतरजःसंहारवाल्या भवो। दन्वन्नौर्व्यसनाग्निमेघपटली संकेतदूती श्रियाम् । निःश्रेणित्रिदिवौकसः प्रियसखी मुक्तेः कुगत्यर्गला सत्त्वेषु क्रियतां कृपैव भवतु क्लेशैरशेपैः परैः ॥ २५ ॥ घनाक्षरी। सुक्रतकी खान इन्द्र पुरीकी नसैनी जान पापरजखंडनको, पौनरासि पेखिये। भवदुखपावकबुझायवेको मेघ माला, कमला मिलायवेको दूती ज्यों विशेखिये ॥ tititiktitut.tkrt.it-t-kuttkukkukkukrt.k.ket-tak-kkikutekekuttakutkiketakikkXXRE Pott.ketitiktutet.tituttextskstatutkrtttit-tituttitut. tt .X XX.XXXAILaxxi AAVAT TRANYAYVा - - - - T T + + + +
SR No.010701
Book TitleBanarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy