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________________ t.* tattitutetatuttakt.kisakt.ki.kirtatutikattri बनारसीविलासः anttitutkukikikattituteketikot.kekukuttektetitutotkekuttikkant trtititikitttttttt संघ अधिकार । रत्नानामिव रोहणक्षितिधरः खं तारकाणामिव स्वर्गः कल्पमहील्हामिव सरः पङ्घरहाणामिव । पाथोधिः पयसामिवेन्दुमहसां स्थानं गुणानामसावित्यालोच्य विरच्यतां भगवतः संघस्य पूजाविधिः ३. मात्रा सवैया छन्द । । जैसे नभमंडल तारागण; रोहनशिखर रतनकी खान । ज्यों सुरलोक भूरि कलपट्ठम; ज्योंसरवर अंबुज वन जान ज्यों समुद्र पूरन जलमंडित, ज्यों शशिछविसमूह सुखदान । तैसें संघ सकल गुणमन्दिर, सेवहु भावभगति मन आन २१ यः संसारनिरासलालसमतिर्मुक्त्यर्थमुत्तिष्ठते यंतीर्थ कथयन्ति पावनतया येनास्ति नान्यः समः। ॐ यस्मै स्वर्गपतिनमस्यति सतां यस्माच्छुभं जायते * स्फूर्तिर्यस्य परा वसन्ति च गुणा यस्मिन्स संघोऽयंताम् । जे संसार भोग आशातज, ठानत मुकति पन्थकी दौर। जाकी सेव करत सुख उपजत, तिन समान उत्तम नहिं और इन्द्रादिक जाके पद वंदत, जो जंगम तीरथ शुचि और। जामैं नित निवास गुन मंडन, सो श्रीसंघ जगत शिरमौर ॥२२॥ लक्ष्मीस्तं स्वयमभ्युपैति रभसात्कीर्तिस्तमालिङ्गति प्रीतिस्तं भजते मतिः प्रयतते तं लब्धमुत्कण्ठया। स्वश्रीस्तं परिरन्धुमिच्छति मुहुर्मुक्तिस्तमालोकते यः संघ गुणसंघकेलिसदनं श्रेयोरुचिः सेवते ॥२३॥ Hott.ttakuttitutikatttitutekat.tititattitutikokotttt.titutitutituttitut.kkkkkk
SR No.010701
Book TitleBanarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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