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________________ esthetstatisthat thistatute that totak.tutat katakatha उत्थानिका।। Fokekukkukukikskkukkukukkukkukukkukikikiktitukikskituttitutiktikotokutekot.kuttekkiki ॐ भाषामें है। वृजमापाके पद्यसे लोग जितने परिचित हैं उतने गद्यसे नहीं हैं । वृजभाषाका गद्य जाननेकेलिये इस ग्रन्यकी * आध्यात्मवचनिका और उपादाननिमित्तकी चिट्ठी पढनी चाहिये। ढूंढारी भाषा जयपुर और उसके आसपास ढूंढार देशकी भाषा है। इसमें और वृजभाषामें इतना ही अन्तर है कि, इंढारीमें प्राकृतशब्दोंका जितना बाहुल्य रहता है, उतना वृजभाषामें नहीं अरहता। और वृजभाषामें फारसी शब्दोंके अपभ्रंश अधिक व्यव हत होते हैं । ढूंढारी मापाके गद्य ग्रन्थ बहुत सरल हैं, प्रत्येक प्रान्तका थोड़ी सी भी हिंदी जाननेवाला उन्हें सहज ही समझ ॐ सकता है। जैनग्रन्थरत्नाकरमें जो स्वामिकार्तिकेयानुप्रेक्षा अन्य निकला ॐ है, उसकी टीका इसी भाषामें है, पाठकगण उसे मंगाके ढूंढारी ॐ भापासे परिचित हो सके हैं। भापागद्य लिखनेवाले जैनविद्वानों पं० टोडरमलजी, पं० जय* चन्द्ररायजी, पं० हेमराजजी, पांडे रूपचन्द्रजी, पं० भागचन्द्रजी और पलिखनेवालोंमें पं० वनारसीदासजी, पं० द्यानतरायजी, पं० भूधरदासजी, पं० भगवतीदासजी, पं० वृन्दावनजी, पं० देवीदासजी, पं० दौलतरामजी, पं० विहारीलालजी और सेवारामजी आदि कविवर उत्कृष्ट गिने जाते हैं । इनके बनाये हुए ग्रन्थोंके 1 पढनेसे इनकी विद्वत्ता अच्छी तरह व्यक्त होती है। आश्चर्य है कि इनमें से किसी भी कविने भंगाररसका ग्रन्थ नहीं बनाया । सभीने ॐ आध्यात्म और तत्त्वोंका निरूपण करके अपना कालक्षेप किया है । पं० भूधरदासजीने कहा है, Hot.kutitutikukutikatukkakuizinkukatukrinakunkuXexnxkeeZTuz-Z.XXX.ink
SR No.010701
Book TitleBanarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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