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________________ rest.tattatot-tetatutottiatristart.tiststartting जैनग्रन्यरत्नाकर titutiktitutkukutekrtiket-titutitutnt-kutakitkatrkut.krketitutrkot.kutteketrkut.kuttituti * सरल और बोधप्रद लिखा गया है, अथवा उनके आधारने नवीन सरल-बोधप्रद अन्य लिखे गये हैं। कर्णाटकी भाषामें अनेक जैनग्रन्थ सुने जाते हैं, परन्तु वे सबको सुलभ नहीं है। ऐनी अनस्थामें प्रत्येक प्रान्तके जैनीको अपने धर्मतत्त्वोंको जाननेकेलिये हिन्दीका ही आश्रय लेना पड़ता है जिनियोंके आवश्यक पटकमा शास्त्रत्वाध्याय एक मुख्य कर्म है, इसलिये प्रत्येक जैनीको प्रतिदिन थोड़ा बहुत शास्त्रस्वाध्याय करना ही पड़ता है, जो हिन्दीम ही होता है। इसप्रकार जैनसाहित्य और नियोंके द्वारा हिन्दी भाषाकी एफ विलक्षणरीतिसे उन्नति होती है। जो जैनी धर्मतत्त्वोंका थोड़ा भी नमन होगा, चाहे वह किसी भी प्रान्तका हो, हिन्दीका जाननेवाला अवश्य होगा । हिन्दी प्रचारकोंको यह सुनकर आश्चर्य होगा कि, जैनियोंके । एक जैनमित्र नामक हिन्दी मासिकपत्रके एक हजार ग्राहक है, जिनमें ५०० उत्तर भारतके और शेष ५०० गुजरात, महाराष्ट्र और कर्णाटकके हैं। नागरीप्रचारिणी सभाओं और हिन्दी हितपियोंको इस ओर ध्यान देना चाहिये। जिस जैनमाहित्यमे हिन्दीकी इस प्रकार उन्नति होती है, उसको अप्रकट रखने की चेष्टा करना, और उसके प्रचारमें यथोचित उत्साह और सहायता नहीं देना हिन्दी हितैपियोंको शोभा नहीं देता। जैन-भाषा-साहित्य-भंडारको अनुपम रत्नोंसे सुसज्जित करनेवाले विद्वान् प्रायः आगरा और जयपुर इन दो स्थानोंगे हुए हैं। आगरे की भाषा वृतमापा कहलाती है, और जयपुर की ढूंढारी जमापाका परिचय देनेकी आवश्यकता नहीं है, क्योंकि हिन्दीकी पुरानी कविता प्रायः इसी भाषामें है, जो सबके पठन पाटनम आती है। ॐ यह वनारसीविलास ग्रन्थ जो पाठकों के हाथमें उपस्थित है, इसी statstituttitutt.titutikittikaittikaitrintertekikatertai.kutatut-tattitudentiane
SR No.010701
Book TitleBanarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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