SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 109
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ pattitutstateketstatutorishtott.tituisit.ttitute जैनग्रन्थरलाकरे १०७ अर्द्धकथानकका ही उत्तरार्द्ध हो, जिसमें उत्तरजीवनकी कथा लिखी गई हो, और अपर नाम वनारसीपद्धति हो । परन्तु हमारे देखनेमें यह अन्य नहीं आया । प्रयत्नसे यदि प्राप्त हो जावेगा, तो वह भी कभी पाठकों के समक्ष किया जावेगा। १ बनारसी विलास-यह कोई स्वतंत्र ग्रन्थ नहीं है, किन्तु । कविवर रचित अनेक कविताओंका संग्रह है, इस संग्रहके की आगरानिवासी पंडित जगजीवनजी हैं। आप कविवरकी कविताके वडे प्रेमी थे । संवत् १७७१ में आपने बड़े परिश्रमसे इस काव्यका संग्रह किया है, ऐसा अन्त्यप्रशस्तिसे स्पष्ट प्रतिमासित होता है । सजनोत्तम जगजीवनजी आगराके ही रहनेवाले थे, इससे संभवतः । उनकी सव कविताओंका संग्रह आपने किया होगा। परन्तु हमको आशा है कि, यदि अब भी प्रयत्न किया नावेगा, तो बहुत सी कवितायें एकत्रित हो सकेंगी । इस भूमिकाके लिखते समय हमने दो तीन स्थानों को इस विषयमें पत्र लिखे थे । यदि अवकाश होता, तो बहुत कुछ आशा हो सकी थी, परन्तु शीघ्रता की गई, इससे कुछ नहीं हो सका । तथापि दो तीन पद इस संग्रहके ॐ अतिरिक्त मिले हैं, जिन्हें हमने ग्रन्थान्तमें लगा दिये हैं। बनारसी विलास' की कविता कैसी है, इसके लिखनेकी आवश्यकता नहीं है। "कर कंकनको आरसी क्या ?" काव्यरसिक पाठक स्वयं इसका निर्णय कर लेंगे। २ नाटक समयसार यह अन्य भाषासाहित्यके गगनमंड PREntrikexuxakkukkutekikakkukekatukarakakakakakaknatakekutekutekakikatukatrkestetrket १ संग्रहकत्तीने इस ग्रन्यमें थोडेसे पद्य कवरलालकी छापवाले भी संग्रह कर लिये हैं । यह कंवरपालजी बनारसीदासजीके पांच मित्रों अन्यतम थे।
SR No.010701
Book TitleBanarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy