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________________ सुभाषितमञ्जरो माननीयजनों के प्रति द्वेष करता है, नीति को छोडना है न सोता और न सुख से खाता है इस तरह मानो मनुष्य मान के वश कष्ट मे पड़ कर अत्यधिक पाप का सचय करता है। ___ मान का फल यो मदान्धो न जानाति हिताहितविवेकताम् । स पूज्येषु मदं कृत्वा नरो भवति गर्दभः ।।१४६।। अर्थ - जो मद से अन्धा होकर हित और अहित के विवेक को छोड़ देता है वह मनुष्य पूज्य पुरुषो के विपय मे मद करके गधा होता है ।।१४६।। मान छोडने का उपदेश देने वाले स्वय मान करते है आदिशान्ति परांश्चेति त्याज्यो मानकषायकः । स्वयं जैनगृहं दृष्ट्वा बहिस्तिष्ठन्ति नीचवत् ।।१५०।। अर्था- कितने ही लोग दूसरो को तो उपदेश देते है कि मान कषाय छोड़ने के योग्य है परन्तु जैन मन्दिर को देखकर स्वय नीच की तरह बाहर खडे रहते है ॥१५०।। विनय का फल समस्तसपदां सङ्घ विदधाति वशं स्वकम् । • चिन्तामणिरिवाभीष्ठं विनयः कुरुते न किम् ।।१५१॥
SR No.010698
Book TitleSubhashit Manjari Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri, Pannalal Jain
PublisherShantilal Jain
Publication Year
Total Pages201
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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