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________________ सुभाषितमञ्जरो ६१ अर्थ - यदि घर मे धन है तो स्त्रिया मरे हुए पति के प्रति कभी शोक नही करती। यदि धन नहीं है तो आजीविका की बुद्धि से प्रति-दिन बार बार स्मरण कर रोती हैं फिर कुछ महीनो मे उसका नाम भी भूल जाती हैं। इस प्रकार भाई भी उसको दाहक्रिया कर अपने अपने कार्य की चिन्ता म निमग्न हो कुछ दिनो मे उसका नाम भूल जाते हैं ।।६४६।। नोट - यह श्लोक स्वार्थपरता प्रकरण का है। -6 मान निषेधनम मानी क्या करता है ? कायं कृन्तति सद्गुणांस्तिस्यति क्लेशं करोत्यात्मना मतु वाञ्छति ना तनोत्यविनयं लोकस्थितिं प्रोज्झति । मान्यं द्वष्टि जनं विमुञ्चति नयं शेते न भुङक्त सुखं मानी मान-शेन कष्टपतितः पापं चिनोत्याततम् ॥१४६॥ अर्थ - मानी मनुष्य काय को छेदता है, सद्गुणो को छिपाता है, अपने आप क्लेश करता है मरने की इच्छा करता है, अविनय को विस्तृत करता है, लोक मर्यादा को छोडता है,
SR No.010698
Book TitleSubhashit Manjari Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri, Pannalal Jain
PublisherShantilal Jain
Publication Year
Total Pages201
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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