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________________ सुभाषितमञ्जरी सम्यग्दर्शन का ऐहलौकिक और पारलौकिक फल इन्द्राहमिन्द्रतीर्थेश लौकान्तिकमहात्मनाम् । बलादीनां पदान्यत्र महान्ति च सुरालये ॥ १०६ ।। • सम्यग्दर्शन के प्रभाव से इस लोक और परलोक मे इन्द्र, अहमिन्द्र, तीर्थकर लौकान्तिक देव तथा बलभद्र आदि के बडे बडे पद प्राप्त होते है ॥ १०६ ॥ सम्यग्दर्शन सब पापो को नष्ट करने वाला है ' वसन्तलिका पापं यदर्जितमेने कभवेदुरन्तं सम्यक्त्वमेतदखिलं महसा हिनस्ति भस्मीकरोति सहसा तृणकाष्ठराशि किं नोर्जितोज्ज्वलशिखो दहनः समृद्धः ॥ ११० ॥ ४६ ! अनेक भंवो मे जो दुरन्त- दुखदायी पाप का सचय होता है उस पत्र को यह सम्यग्दर्शन शीघ्र ही नष्ट कर देता है सो ठीक ही है क्योकि प्रचण्ड और उज्ज्वल ज्वालाओ से युक्त देदीप्यमान अग्नि क्या तृण प्रोर काष्ठ की राशि को सहमा भस्म नही कर देती ? -
SR No.010698
Book TitleSubhashit Manjari Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri, Pannalal Jain
PublisherShantilal Jain
Publication Year
Total Pages201
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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