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________________ सुभापितमञ्जरी दो उपवास का फल मिलता है मुहूर्तट्टितयं यन्तु न भुङ्क्ते प्रतिवासरम् । पष्ठोपवामिता तस्य जन्तो मासेन जायते ॥३४०।। अर्था - जो प्रतिदिन दो मुहूर्त तक भोजन नहीं करता है वह मास में वेला अर्थात दो उपवास के फल को प्राप्त होता है ।।३४०॥ रात्रिभोजन के त्याग का फल निजकुलेकमण्डन त्रिजगदीशसम्पदम् । भजति यः स्वभावतस्त्यजति नक्तंभोजनम् ।।३४१॥ अर्थ - जो स्वभाव से ही रात्रि भोजन का त्याग करता है वह अपने कुल का आभूषण होता हुआ त्रिलोकीनाथ की सम्पत्ति को प्राप्त होता है ।।३४१॥ दिन भर उपवास रखकर रात्रि मे भोजन करना ठीक नहीं है त्याज्यमेतत्परं लोके यत्प्रपीडय दिवा दुपा। आत्मानं रजनीभुक्त्या गमयत्यर्जितं शुभम् । ३४२॥ अर्था । दिन भर भूख से अपने आपको पीडिन कर जो शुभ कर्म अर्जित किया है उसे वह रात्रिभोजन से दूर कर दता है । लोक मे यह प्रथा अत्यन्त त्याज्य है ।।३४२॥
SR No.010698
Book TitleSubhashit Manjari Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri, Pannalal Jain
PublisherShantilal Jain
Publication Year
Total Pages201
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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