SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 134
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सुभाषितमञ्जरी महादानी का लक्षण इतो हीनं दत्ते सति सुविभवे यस्तु पुरुषो मतं तद् यत् किंचित्खलु न गणितं धार्मिकनरैः इमान भागांस्त्यक्त्वा वितरति बुधो यस्तु बहुधा महासच्चस्त्यागी भुवनविदितोऽसौ रविरिव । २५४ ।। १०२ अर्थ- जो मनुष्य वैभव के रहते हुए भी उपर्युक्त विभागों से कम दान देता है धार्मिक पुरुष उसे किसी गणना मे नहीं रखते तथा जो इन भागों को छोड कर बहुत दान देता है वह यहां उदार त्यागी है तथा सूर्य के समान संसार प्रसिद्ध है विराग वाटिका जन्म का फल क्या है ? धर्मे रामः भुते चिन्ता दाने व्यसनमुत्तमम् । इन्द्रियार्थेषु वैराग्यं संप्राप्तं जन्मनः फलम् || २५५ ।। आ:- यदि धर्म में राग है, शास्त्र में चिन्ता है, दान में उत्तम व्यसन है और इन्द्रियों के विषयों में वैराग्य है तो जन्म का फल प्राप्त हो गया ||२५||
SR No.010698
Book TitleSubhashit Manjari Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri, Pannalal Jain
PublisherShantilal Jain
Publication Year
Total Pages201
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy