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________________ सुभाषितमञ्जरी कारः कृष्णः पिकः कृष्णः को भेदः पिककाम्योः। प्राप्ते वसन्तसमये काकः काकः पिकः पिकः ॥२३१॥ अर्थ:- कौमा काला है और कोयल भी काली है परन्तु वसन्त का समय आने पर कौमा कौमा रह जाता है और कोयल कोयल हो जाती है ।।२३१।। ज्ञानाराधना की प्रेरणा मालिनी छन्द विमलगुणनिधानं विश्वविज्ञानबीज जिनमुनिगणसेव्यं सर्वतचप्रदीपम् । दुरितधनसमीर पुण्यतीर्थ जिनोक्ता मनइभमदसिंह ज्ञानमाराधय त्वम् ।।२३२॥ अर्थ - जो निर्मल गुणो का भण्डार है, समस्त विज्ञानों का बीज है, जिनेन्द्र और मुनियो के समूह से सेवनीय है, समस्त तत्वो का प्रकाशन करने वाला है, पापरूपी मेघ को प्रचण्ड वायु है, पवित्र तीर्थ रूप है, जिनेन्द्र भगवान् के द्वारा कहा गया है और मनरूपी हाथी के मद को नष्ट करने के लिये सिंह है ऐसे ज्ञान की हे भव्यजीवो तुम आराधना करो।
SR No.010698
Book TitleSubhashit Manjari Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri, Pannalal Jain
PublisherShantilal Jain
Publication Year
Total Pages201
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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