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________________ सुभाषितमञ्जरी २ प्रासुकैरोपधैः पुसा यत्नतो मुक्तिकाङक्षिणा ।।२८॥ अर्था- तपस्वियो का शरीर सयम का आधार है इसलिये मुक्ति के अभिलाषी पुरुषो को प्रामुक औषधियो के द्वारा साधुवो के शरीर कीरक्षा करना चाहिये ॥२२८॥ ___ औषधदान मे सब दान गभित है चारित्रं दर्शनं ज्ञान बाध्यायो विनयो जपः । सर्वेऽपि विहिता स्तेन दत्तं येनौषवं यतेः ॥२२६॥ अर्धा.. जिसने मुनि के लिये औषध दी है उसने चारित्र, दर्शन, ज्ञान, स्वाध्याय, विनय और जप आदि सभी कुछ दिये हैं ॥२२६॥ ज्ञान प्रशसा ' विवेक ही शोभा का कारण है हंसः श्वेतो वक; श्वेतः को भेदो वकहंमयोः । नीरक्षीरविवेके तु हंसो हंसो को वकः । २३०॥ अर्थः- हस सफेद है और बगुला भी सफेद है। बाह्म रूप रङ्ग की अपेक्षा बगुला और हस मे क्या भेद है ? परन्तु जब दूध और पानी को अलग अलग करना पडता है तब हस हस हो जाता है और बंगुला ही बना रह जाता है ।।२३०॥
SR No.010698
Book TitleSubhashit Manjari Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri, Pannalal Jain
PublisherShantilal Jain
Publication Year
Total Pages201
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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