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________________ सुभाषितमञ्जरी सब दान दिये हैं, सब यज्ञ किये हैं श्रीर सब तीर्थों में स्नान किये हैं ||१८|| दया धर्म का मूल हैं दयालो भवेद् धर्मोदया प्राण्यनुकम्पनम् । दयायाः परिरक्षार्थ गुणाः शेषाः प्रकीर्त्तिताः ॥ १६६ 3 :- धर्म दयामूलक है प्राणियो पर अनुकम्पा करना दया है तथा दया की रक्षा के लिये ही शेष- समस्त गुण कहे गये हैं । आहारदान प्रशंसा मुनि भुक्तावशेष भोजन के भक्षरण का फल श्रमणानां भुक्तशेषस्य भोजनेन नरो भवेत् । तुष्टिपृष्टिबलारोग्यदीर्घायुः समन्वितः ॥ २००॥ :- मुनियो के भोजन से प्रवशिष्ट पदार्थों का भोजन करने से मनुष्य तुष्टि, पुष्टि, बल, आरोग्य और दीर्घ प्रायु से सहित होता है ||२०० मुनियों को आहारदान का फल बोणित्वसेस भुजइ सो 'जए जिद्दिट्ठ' | संसारसारसोक्खं कमसो व्विाणवरसोख ॥ २०१ ॥
SR No.010698
Book TitleSubhashit Manjari Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri, Pannalal Jain
PublisherShantilal Jain
Publication Year
Total Pages201
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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