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________________ ७ ज्ञानानन्दरत्नकिर। नरनारी टेक || रागदेष मद मोह श्रादि जिनके वसे स्वयमेष, कामी कोषी छलबारी सो जानों सर्व कुदेव, वीतराग सर्वज्ञ हितेच्छक शिक्षा बहुभेष, संसार भूमण ना नाके सो नानी सर्व सुदेव । ऐसे लक्षण शुभ अशुभ देख परिधान करो सारी, गुरुवार वार समझाब सब चेतो नरनारी १ ॥ शड सगूंग जो तपकर धरै बहु पादम्पर मानी, अपि यती वन वैरागी निजमुख से भज्ञानी । धनले वीर्य के नाम बने या परधन ले दानी, ये घि इ कुगुरु के मानो जो भाप जिनपाणी, नितपो शिथिलाचार रहैरत काया से भारी गुरु बार बार समझायें सब चेतो नरनारी ॥ २ ॥ निन पो विषय कपाय और आहार सदोष करें, हिंसामय धर्म वतावें सो जानो अगुए खरै । मोनिबाधक तप तपें दिगम्बर शांति स्वरूप धरें, सो मुगुरु तिन्हें नित सेवो परतारें श्राप तरे, अब सुनो कुधर्म सुधर्म रूप लख पूजोधी पारी, गुरु पार वार समझाये सब चेतो मर नारी ॥ ३ ॥ पक्षपात युत रागद्वैष पोषक जामें उप देश, श्रृंगार युद्ध क्रीड़ादि इनका स्वतंत्र आदेश ॥ ऐसा कुधर्ग पहिचानवजी अषखान सजो मत लेश । शुभधर्म दया युत पालो जो मापा प्राप्त मिनेश। सम्यक रत्नत्रय रूप भूप त्रिभुवन पति हितकारी | गुरु बारबार समझा सब तो नर नारी ॥ ४॥ यो परख मुदेव सुगुरु सुधर्म पीछे कीजे श्रद्धाण । विम किये परीचा पूर्ण सो पीट लीक अज्ञान || दमड़ी का बर्तन सय उसे गे फिर फिर देकाना देवादि परख ना पूजे सो जगमें रत्न महान ।। कई नाथूराम निम भक्त समझ क्यों बनते अविचारी, गुरु बार २ समझा। सब घेतो नरनारी श्रीजिनेंदू स्तुति ६७। - शरणं मुख दाईजी महराज धन्य प्रभुताई तुम्हारी जिन देव, तुम्हारी जिन देवहो तुम्हारी जिनदेव, करें सुरनर सेव ॥ टेक || अधम उद्धारक जी मह राज भवोदधि तारक प्रभु त्रिभुवन त्राता, प्रभू त्रिभुवन आताहो प्रभू त्रिभुवन जाता । नमों शिव सुखदाता । वहुत भव भटकाजी महराज अवोमुख लटका कर्मवश रमाना, कर्म वश उरमाताहो कर्मवश उरमासा, नहीं पाई सादा ।
SR No.010697
Book TitleGyanand Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Munshi
PublisherLala Bhagvandas Jain
Publication Year1902
Total Pages97
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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