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________________ ज्ञानानन्दरत्नाकर। टेफ ॥ कहत सब दया धर्म की मूल, फिर हिंसा यज्ञादि में करते यह मूसाँकी भूख, पो उन वेद शास्त्रपर धूल, जिनमें हिंसाधर्म प्ररूपा शास्त्र नहीं ये शूल दाहा। जो पुष्टों करके रचे काम क्रोध की खान । शास्त्र नहीं वे शस्त्र हैं घातक निज गुण ज्ञान ॥ जैन विन अन्य वयन कक्षा,अन्य देव सब रागी द्वेषां मिथ्यामव रच्या १॥ शस्त्र धारें क्रोधी कामी, या सेवक निर्वल शंकायुत सो अपूज्य नामी । दयायुत जो अन्तर्यामी,सो क्यों हत शस्त्र गहि पर जियो त्रिभुवन स्वामी ।। माशकरे पर प्राण का सो क्यों रहा. दयाल | जैसे मेरी गात अरु वांझ कहै ज्यों वाल ॥ वाझ क्यों रही जना बच्चा, अन्य देव सव रागी द्वैपीमिथ्यामत रस्यार रमे ईश्वर निजपर नारी,सो कुशील को त्याज्य कहा क्यों यह अचरम भारी, गयी मवि मूलों की मारी,राग द्वैपकी सान तिन्हें को ईश्वर भरवारी!! दोहा। शाम कोषयश जो मरे सह नर्क दुःख प्रार। तिनको शठ ईश्वर कहै सो कैसे हरै पाप ॥ पर जो आप नर्क खच्चा, अन्य देव सब रागी वैषी मिथ्या मत रच्चा ॥३॥ सारएक वीतराग वाणी, जो सर्वज्ञ देव निज भाषी त्रिभुवन पतिज्ञानी। जिसे हरि हल चक्रीमानी, सेवतशत सुरराय हपंधर सतगुरु बक्सानी ॥ दाहा। जागणी के सुनतही होय जीव सुज्ञान । ' नाथूराम भवतज लहैं निश्चय पद निर्वाण ॥ फेरना जने ताहि जच्चा, अन्य देर सव रागी द्वैपी मिथ्यामत रच्या ॥४॥ देव धर्म गुरुपरीक्षा ६६। करो देव गुरुधर्म परीक्षा शिक्षा हितकारी गुरुवार बार समझा सव चेतो
SR No.010697
Book TitleGyanand Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Munshi
PublisherLala Bhagvandas Jain
Publication Year1902
Total Pages97
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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