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________________ ज्ञानानन्दरत्नाकर वहां कोई निज देरीको वश मोह शुद्ध भापे अवर । अन्य सत्रों को गटीना कहत तहां ना लावे देर ॥ ॥ चौपाई॥ ताहि कुधी वह पक्षपात कर | शुद्ध मान पास अपने घर ।। की रसोई रहत हर्प घर । मृतिका भख माने भोजन वर ।। ॥दोहा॥ शुद्ध पान तिहि शुद्ध कर करें शुद्ध थाहार । गिज पर पन नहीं कर गहें वस्तु जो सार ।। पर भौगुण खल बहुन नखे निगोगुण देख न यादिकरें। निज निज मतपत्त सय मतवार बकवाद करें ॥ ७ ॥ जय दीर्य सब राशों की मृतिका को सुधी मृतिका जानें। निकाज ताको शेष गहुन को शुद्ध गहू गाने । गिज पर न कदापि करें ना चित्त परमार्य में सार्ने । सत्य कपन को मुधी निश्पक्ष शुद्ध कर पहिचान ॥ ॥चौपाई॥ मिथ्या पक्ष मुधी ना करते । निज पर के दूपण को हरते ।। गो गन पक्ष हृदय में धरते। नायूगम भवी नर ते ।। ॥दोहा॥ व विथा पढ़कर कुधी कर मत पक्ष विवाद । समय गमा वृयाही लहत न नर पर स्वाद ।। सरा कनिकाल कगल 'जीप निज हित में अधिक प्रमाद करें। नि निज मत में पत्त सब मतबारे क्कवाद करें ॥ ८ ॥ ॥ अवस्थाओं की लावनी ३३॥ बड़े बड़े भवसागर में विन पौरुप किस पायें पार । जना जलयि के तरुण
SR No.010697
Book TitleGyanand Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Munshi
PublisherLala Bhagvandas Jain
Publication Year1902
Total Pages97
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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